ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से बिसातें बिछ चुकी हैं। सभी जनपदों में राजनीतिक पार्टी चुनाव को लेकर प्रत्याशियों का आंकलन कर रही हैं। विधानसभा चुनाव में इस बार गाजियाबाद फिर से सुर्खियों में रहने वाला है, क्योंकि राजनीतिक पार्टियों के लिए गाजियाबाद की जनता के मूड को समझना एक चैलेंज बन गया है।
मेयर उपचुनाव में कांग्रेस और समाजवार्दी पार्टी को मिली हार ने बसपा के लिए भी चिंता की लकीरें खींच दी हैं, क्योकि इस बार मेयर चुनाव में बसपा द्वारा प्रत्याशी न खड़ा किए जाने से वोटरों का धुव्रीकरण हो गया है। उधर, मुज्जफरनगर उपचुनाव में भी बसपा का प्रत्याशी नहीं खड़ा हुआ था, जिस कारण वहां भी उसका वोटर दूसरी पार्टी की तरफ मुड़ा है। इससे माना जा रहा है कि अगर बसपा सुप्रीमो व वरिष्ठ नेताओं की तरफ से संगठन में ढिलाई बरती गई तो विधानसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भाजपा के पास चला गया बसपा का वोट बैंक
कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार, मेयर चुनाव में भाजपा को मिली शानदार जीत के पीछे बसपा के वोट बैंक को माना जा रहा है। इसके अलावा हाल ही में उनकी पार्टी के एक दलित कार्यकर्ता जितेन्द्र के साथ अभ्रदता हो गई थी। इसकी वजह से भी कांग्रेस के पास से दलित दूसरी पार्टियों के पास चला गया। हालांकि, इस बार कांग्रेस का वोटर बढ़ा है। मेयर चुनाव के कारणों को जानने के लिए हम समीक्षा करेंगे।
उपचुनाव लड़ना बेहतर नहीं
उपचुनाव लड़ना बेहतर नहीं
बसपा से शहर विधायक सुरेश बंसल के अनुसार, हमारी पार्टी उपचुनाव नहीं लड़ती। इसकी वजह से ही मुज्जफरनगर और गाजियाबाद के उपचुनाव को उपयुक्त नहीं माना गया। इसका विधानसभा चुनाव पर कोर्इ फर्क नहीं पड़ेगा। हम बाबा साहब की नीतियों को मानते हैं। वोटर हमारा कहीं भी नहीं जाएगा।
चुनाव में प्रत्याशी खड़ा ना करने से नहीं पड़ेगा फर्क
चुनाव में प्रत्याशी खड़ा ना करने से नहीं पड़ेगा फर्क
बसपा से राज्यसभा सांसद नरेन्द्र कश्यप ने बताया कि बसपा अगर विधानसभा और मेयर में अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करती तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बहन मायावती की तरफ से समय-समय पर अपने वोटरों को मोटिवेट किया जाता है। बाकि विधानसभा चुनाव को लेकर जमीनी स्तर पर बसपा काम कर रही है।
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