Saturday, November 12, 2016

लखनऊ : रामगोपाल यादव की जगह राज्यसभा में कौन होगा सपा का नेता?

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से प्रोफेसर रामगोपाल यादव के निष्कासन के बाद अब पार्टी के भीतर इस बात की चर्चा हो रही है कि 16 नवंबर से शुरू हो रहे संसदीय सत्र से पहले राज्यसभा में सपा का नेता कौन होगा?
सूत्रों के मुताबिक जो नाम उभरकर सामने आए हैं, उनमें वरिष्ठ सपा नेता कुंवर रेवतीरमण सिंह और नरेश अग्रवाल के नाम शामिल हैं. रामगोपाल यादव को सपा में जारी उठापटक के बीच पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था.
ऐसे में अब पार्टी को राज्यसभा में अपने नए नेता का चुनाव करना है. सूत्रों के अनुसार इस समय पार्टी में रेवती रमण सिंह और नरेश अग्रवाल का नाम इस पद के लिए सबसे आगे चल रहा है. इसके आलावा बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह का नाम भी राज्यसभा में पार्टी के नेता के रूप में आगे आ रहा है.मुलायम सिंह यादव का अमर सिंह से प्रेम जगजाहिर है पर पार्टी में चल रहे हालिया विवाद और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विरोध के करना उन्हें राज्यसभा में पार्टी का नेता नियुक्त किये जाने की सम्भावना कम है.

बेनी प्रसाद वर्मा की गिनती पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में होती है और उनकी मुलायम से नजदीकियों के बारे में भी सब जानते है. पर अपने बड़बोलेपन के कारण उनको इस पद से हाथ धोना पड़ सकता है.
ऐसे में मुख्य मुकाबला रेवती रमण सिंह और नरेश अग्रवाल के बीच ही दिख रहा है. ये दोनों नेता मुलायम सिंह के काफी करीबी माने जाते है. अब देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी सुप्रीमो मुलायम किसे राज्यसभा में पार्टी का नेता नियुक्त करते है.
सपा सूत्रों के अनुसार, बेनी प्रसाद वर्मा भी राज्यसभा में सपा के नेता बनने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं. इनके अलावा पश्चिमी यूपी के कुछ सांसद भी प्रयासरत हैं.

Friday, November 11, 2016

लखनऊ : सरकार के लिए गन्ना किसानों का हित सर्वोपरि: अखिलेश

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि गन्ना किसानों का शत-प्रतिशत भुगतान करने वाली चीनी मिलों को राज्य सरकार विशेष रूप से प्रोत्साहित करेगी।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने आज यहां बताया कि मुख्यमंत्री ने एक उच्चस्तरीय बैठक में चीनी मिलों द्वारा किए गए भुगतान की अद्यतन जानकारी प्राप्त करते हुए नये पेराई सत्र की तैयारियों का भी जायजा लिया।
इस मौके पर उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के लिए गन्ना किसानों का हित सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान समय से कराने के लिए पेराई सत्र के प्रारम्भ से ही हर सम्भव तैयारी पहले से की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन चीनी मिलों के प्रबन्धक भुगतान में लापरवाही बरत रहे हैं, उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाए।
ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश चीनी उत्पादन के मामले में देश में पहले नम्बर पर है। वर्तमान राज्य सरकार के कार्यकाल में निजी चीनी मिलों के अलावा सहकारी चीनी मिल संघों की मिलों ने भी चीनी की रीकवरी में अच्छी प्रगति की है।
गत पेराई सत्र में सहकारी चीनी मिल संघों द्वारा करीब 400 करोड़ रुपए की अतिरिक्त चीनी का उत्पादन किया गया। उन्नत प्रजाति के गन्ने की खेती को प्रोत्साहन देने तथा अन्य कृषि निवेशों की समय पर उपलब्धता के कारण प्रदेश में गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टेयर में गत पेराई सत्र में 07 टन प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त वृद्धि हुई थी, जो वर्तमान पेराई सत्र में और अधिक बढ़ने की सम्भावना है।

लखनऊ:नोटों पर सियासी हलचल,अखिलेश यादव का PM मोदी और जेटली को नोट बंदी पर लिखा पत्र

अखिलेश यादव
ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय वित्त मंत्री  अरुण जेटली से निजी अस्पताल, नर्सिंग होम और दवाई की दुकान में 500 और 1000 रुपये के नोटों की ग्राह्यता कम से कम 30 नवम्बर, 2016 तक बढ़ाने का अनुरोध किया है। ताकि भारत सरकार द्वारा तात्कालिक प्रभाव से इन नोटों को कतिपय प्रतिबन्धों के साथ अवैध घोषित करने से उत्पन्न स्थिति के सामान्य होने तक, गरीबों और आम जनमानस को कम से कम चिकित्सा उपचार/भर्ती होने के लिए परेशान न होना पड़े। इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री व केन्द्रीय वित्त मंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध किया है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री व केन्द्रीय वित्त मंत्री को अवगत कराया है कि अभी भी बहुत बड़ी जनसंख्या चिकित्सकीय आवश्यकताओं के लिए निजी क्षेत्र पर निर्भर है। एक गरीब किसान और आम नागरिक चिकित्सा, आपदा, दुर्घटना, बीमारी में जब निजी अस्पताल और नर्सिंग होम में उपचार के लिए अथवा भर्ती होने जा रहा है तो इस प्रतिबन्ध की वजह से उसको भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। कई मरीजों के लिए यह स्थिति जानलेवा भी हो रही है।
इसके मद्देनजर श्री यादव ने प्रधानमंत्री व केन्द्रीय वित्त मंत्री से इस गम्भीर समस्या के तात्कालिक समाधान के लिए व्यक्तिगत ध्यान और हस्तक्षेप का अनुरोध भी किया है।
देखें अखिलेश यादव का पत्र:- 
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भाजपा लोगों के दुःख-तकलीफ की अनदेखी कर रही है : मायावती

Mayawati
ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
लखनऊ. बसपा सुप्रीमो मायावती ने केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा व उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर 500 व 1,000 रूपये के नोट तत्काल प्रभाव से बन्द करने के फलस्वरूप देश की लगभग समस्त सवासौ करोड़ लोगां की दुःख-तकलीफ व जनपीड़ा को देखने के बावजूद भी उसकी घोर आपराधिक अनदेखी करने की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि भाजपा के इस तानाशाही व अहंकारी व्यवहार की सजा जनता उसे जरूर देगी।
भाजपा अध्यक्ष  अमित शाह के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये  मायावती ने कहा कि देश में कालेधन व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा दिनांक 8 नवम्बर की रात को जो तानाशाही रवैये को दर्शाने वाला व आर्थिक इमरजेन्सी लगाने वाला फैसला लिया गया है तो उससे खासकर देश के करोड़ों गरीबों व मेहनतकश तबके के लोगों को जो पिछले कई दिनों से पीड़ा हो रही है, तो उनकी इस पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर ही बी.एस.पी. ने कल अपनी सख्त प्रतिक्रिया केन्द्र की सरकार के उपरोक्त फैसले के खिलाफ व्यक्त की है। और जब देश की शासक पार्टी अपने देशवासियों व आम नागरिकों की पीड़ा को भी नहीं समझ पाये तो ऐसी सरकार के बुरे दिन आने अब ज्यादा दिन दूर नहीं लगते हैं, यह जनता में आमचर्चा भी है।
इसके साथ ही, केन्द्र सरकार के लिये अंधभक्ति वाले समर्थन में भाजपा अध्यक्ष का यह कहना कि केन्द्र के इस फैसले से बी.एस.पी. के लिये ‘‘आर्थिक इमरजेन्सी‘‘ या आपातकाल होगा, तो इस सम्बन्ध में भी बी.एस.पी. की प्रमुख मायावती  ने यह कहा है कि भाजपा अध्यक्ष  अमित शाह को शायद यह मालूम नहीं है कि जमीन से जुड़े बी.एस.पी. के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं ने कठिन से कठिन समय में भी अपनी पार्टी को कभी आर्थिक तकलीफ नहीं होने दी है और वे पूरे तन, मन, धन से हमेशा ही बी.एस.पी. मूवमेन्ट को सहयोग करते रहे हैं और जिससे पूरा देश वाकिफ है। ऐसे में  अमित शाह जानकर भी अंजान बने रहे तो फिर इसका कोई क्या कर सकता है?
मायावती  ने कहा कि प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी सरकार का लगभग आधा कार्यकाल पूरा हो गया है परन्तु भ्रष्टाचारी लोगों को व विदेशों आदि में कालाधन रखने वाले एक भी व्यक्ति को ऐसी सख्त सजा नहीं दिलायी जा सकी है कि उस तबके को सदमा पहुँचे। फिर भी 500 व 1,000 रूपये का नोट अचानक ही बन्द करके देश के करोड़ों गरीब व मेहनतकश एवं मध्यम आय वर्गीय तबके को जो सदमा व आघात पहुँचाया गया है, वह इस भाजपा सरकार के गरीब विरोधी व बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों की समर्थक पार्टी व उस जैसी ही सरकार चलाने के चाल, चरित्र व चेहरे को और ज्यादा बेनकाब करता है। इसके साथ ही केन्द्र की भाजपा सरकार के इस अधकच्चे व अपरिपक्व फैसले से जो देश की विशाल जनसंख्या को सदमा व आघात पहुँच रहा है, तो यह अति गम्भीर व गहरी चिन्ता की भी बात है।
जिसे मध्यनजर रखते हुये उन्होंने बीजेपी व केन्द्र में इनकी सरकार को यह भी सलाह दी है कि वे अपने इस अधकच्चे व अपरिपक्व लिये गये फैसले में, जो भी गम्भीर कमियां है तो उन्हें छिपाने की बजाय, जल्दी ही दूर करने का प्रयास करें।

Thursday, November 10, 2016

लखनऊ : मोदी ने देश में अघोषित आर्थिक इमरजेंसी लगा दी: मायावती

Mayawati
ब्रेक न्‍यूज ब्‍यूरो
लखनऊ:
 बसपा सुप्रीमो मायावती ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्‍होंने कहा कि जनता का ध्यान मुद्दों से भटकाया जा रहा है। मायावती ने मोदी सरकार की 500 और 1000 रुपए के नोट बदलने की जमकर आलोचना की। मायावती ने पीएम मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी ने कालाधन विदेश भेज दिया है। उन्होंने कहा, ”पीएम मोदी ने ब्लैक मनी पर सर्जिकल स्ट्राइक करके देश में अघोषित आर्थिक इमरजेंसी लगा दी है।
मायावती ने केंद्र की मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि ढाई साल मे मोदी ने धन्नासेठों को लाभ पहुंचाया है। वहीं बीजेपी ने अगले 100 साल के लिए खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत कर लिया है। क्योकि पूंजीपतियों को लाभ पहुंचने के लिए इस सरकार ने योजनाएं चलाईं है। मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकार पूंजीपतियों के कालेधन को सफेद कर रही हैं। मोदी की इस एलान के बाद से देश में अफरातफरी का माहौल बना।
मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकार भ्रष्टाचारियों की मदद कर रही है। मायावती ने कहा कि छोटे कर्जदारों पर बैंक दबाव बनाती है, जिसकी वजह से वो आत्महत्या कर रहे हैं, वहीं बड़े-बड़े धन्नासेठों का बीजेपी ने कर्जा माफ किया।
जबकि पीएम खुद को चाय बेचने वाला, गरीब इंसान बताते हैं, लेकिन उन्होंने कभी झुग्गी-झोपड़ियों के लोगों का दर्द नहीं समझा। पीएम मोदी के फैसले से पेट्रोल पम्पों में लोगों को बहुत परेशानी हुई। क्योकि बीजेपी वालों ने पेट्रोल पम्पों से सांठगांठ हो गई थी। वहीं मेडिकल स्टोरो पर लोगों को दवाएं मिलने में परेशानी हुई।
आने वाले चुनाव में बीजेपी को जनता इसकी कड़ी सजा देगी। क्योकि मोदी के इस एलान के बाद गरीब किसानों को सबसे ज्यादा आर्थिक चोट पहुंची हैं। मायावती ने दावा किया कि बीजेपी सरकार के ऊपर आरएसएस का डंडा चलता है। आज देश की सीमाएं पहले की तरह असुरक्षित बनी हुईं हैं। जहां सीमा पर लगातार सैनिक शहीद हो रहे हैं। वहीं अपनी कमियों को छुपाने के लिए बीजेपी ने यह कदम उठाया है।

बलिया से निकलेगी परिवर्तन यात्रा

bjp_parivartan_yatraब्रेक न्यूज ब्यूरो
बलिया. बीजेपी की परिवर्तन यात्रा का चौथा चरण बुधवार को बलिया से शुरू होगा। यात्रा के इनॉगरेशन के दौरान होने वाली जनसभा को अमित शाह एड्रेस करेंगे। इसके अलावा गृहमंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी यूपी इंचार्ज ओम माथुर, बीजेपी यूपी चीफ केशव प्रसाद मौर्या, केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा भी प्रोग्राम में मौजूद रहेंगे।
बता दें, इससे पहले बीजेपी की तीन परिवर्तन यात्राएं सहारनपुर, झांसी ओर सोनभद्र से अलग-अलग विधानसभाओं के लिए रवाना हो चुकी हैं। चार यात्राओं का समापन 24 दिसंबर को लखनऊ में होगा, जिसमें नरेंद्र मोदी रैली को एड्रेस करेंगे। इससे पहले यह 17 हजार किमी की दूरी तय करेगी। ये यात्राएं 50 दिनों में 403 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेंगी।

Wednesday, November 9, 2016

लखनऊ : अखिलेश के 73 फीसदी मंत्री करोड़पति

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार के 55 मंत्रियों में से 40 यानी 73 फीसदी मंत्री करोड़पति हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने शपथ-पत्र में अपनी कुल सम्पत्ति 8़84 करोड़ रुपये घोषित की थी। हरदोई के विधायक नितिन अग्रवाल ने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी अपने शपथ-पत्र में कुल संपत्ति 7.85 करोड़ रुपये घोषित की थी।
मंत्रियों में सबसे अमीर गाजीपुर के विधायक विजय कुमार मिश्र हैं, जिन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी नामांकन के साथ दाखिल शपथ-पत्र में अपनी सम्पत्ति 9.51 करोड़ रुपये घोषित की थी। उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) द्वारा प्रदेश सरकार के 56 में से 55 मंत्रियों के शपथ-पत्रों के विश्लेषण से यह जानकारी सामने आई है।
सबसे कम सम्पत्ति वाले मंत्रियों में अयोध्या से विधायक तेज नारायण हैं, जिन्होंने शपथ-पत्र में कुल सम्पत्ति 66,612 रुपये घोषित की थी। दूसरे स्थान पर तिर्वा कन्नौज के विधायक विजय बहादुर पाल हैं, जिन्होंने अपने शपथ-पत्र में अपनी कुल संपत्ति 18 लाख रुपये घोषित की थी।
अखिलेश सरकार के इन 55 मंत्रियों में से 33 मंत्रियों ने अपनी देनदारी घोषित की है, जिनमें रायबरेली के ऊंचाहार से निर्वाचित मनोज कुमार पाण्डेय ने अपने शपथ-पत्र में अपनी देनदारी 1.97 करोड़ रुपये घोषित की थी। तीसरे स्थान पर खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं, जिन्होंने अपने ऊपर कुल 38 लाख रुपये की देनदारी घोषित की थी।
आयकर विवरण में सबसे ज्यादा वार्षिक आय घोषित करने वाले प्रदेश सरकार के मंत्रियों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले स्थान पर हैं। बतौर एमएलसी उन्होंने आयकर विवरण में अपनी और अपनी सांसद पत्नी की आय जोड़ते हुए वित्तीय वर्ष 2010-11 में भरे गए आयकर रिटर्न में अपनी कुल आय कुल 21 करोड़ 42 लाख 903 रुपये घोषित की थी।
अखिलेश सरकार के इन 55 मंत्रियों में से 45 स्नातक या इससे अधिक शैक्षिक योग्यता वाले हैं।

लखनऊ : अखिलेश का केंद्र सरकार से अपील पुराने नोट बदलने को गांवो में शिविर लगाए

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
लखनऊ. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की ओर से देश में 500 रुपये व 1,000 रुपये के नोट बंद किए जाने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह गावों में विशेष शिविर लगाकर नोट बदलने की व्यवस्था करे, ताकि लोगों को परेशानी न हो।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि केंद्र सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इन नोटों के बंद होने से गांवों के निवासियों, गरीबों व किसानों को कोई असुविधा न हो।
उन्होंने कहा है कि आम नागरिकों और व्यापारियों को नोटों के बदलाव में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।अखिलेश ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में बैंक शाखाओं की संख्या कम होने के कारण केन्द्र सरकार को इन इलाकों में विशेष शिविर लगाकर पुराने नोटों को बदलने की व्यवस्था करनी चाहिए।

लखनऊ : 500, 1000 रुपये के नोट बंद होने के बाद यूपी में हाई अलर्ट

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
लखनऊ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित सभी जिलों में हाई अलर्ट घोषित किया है। पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने जिला पुलिस प्रमुखों को मॉल, पेट्रोल पम्पों, सीएनजी स्टेशनों, दवा की दुकानों पर पुलिस बल तैनात करने व पेट्रोलिंग बढ़ाने का आदेश दिए हैं।
बड़े पुलिस अधिकारियों को सड़क पर गश्त करने की हिदायत दी गई है। पुलिस अधिकारियों से कहा गया है कि 11 नवंबर तक पेट्रोल पंप, दवा की दुकानों पर 1,000 और 500 रुपये के नोटों का भुगतान किया जा सकेगा। रेल और बस यात्रा के दौरान भी इन नोटों का भुगतान किया जा सकेगा। लिहाजा ऐसे स्थानों पर नोक-झोंक रोकने के लिए पुलिस मुस्तैद की गई है।
लखनऊ की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मंजिल सैनी ने आईएएनएस को बताया, “सभी एसएचओ व थाना प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में आने वाले एटीएम बूथ, पेट्रोल पंप व बाजारों में सुरक्षा बढ़ा दें।”उन्होंने बताया कि बैंक और डाकघरों के आसपास के इलाकों में भी सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है तथा किसी भी तरह की स्थिति से निपटने का आदेश दिया गया है।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच सौ व एक हजार रुपये के नोट बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद गांवों में विशेष काउंटर लगाने की मांग की है। मंगलवार देर रात 10.38 बजे ट्वीट कर मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार को गांवों व जिला केंद्रों पर विशेष बैंकिंग काउंटर स्थापित करने चाहिए।

Monday, November 7, 2016

लखनऊ : अखिलेश पर मायावती का तंज कहा गठबंधन किया तो समझो हार मान ली

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ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार पर आज बड़ा हमला बोला. भाजपा की परिवर्तन यात्रा और समाजवादी पार्टी के परिवार में मचे घमासान पर मायावती ने चुटकी लेते हुए कहा कि ऐसे हालात ने सत्ता में उनकी राह आसान कर दी है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का परिवर्तन लाने का एलान पहले बंगाल फिर बिहार और अब तक दिल्ली में पूरी तरह से फेल हो चुका है. परिवर्तन यात्रा जिस तरह के परिवर्तन लाने का एलान करने के लिए निकल रही है. जनता जानती है कि भाजपा के शासन में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला है.
मायावती ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी किसान विरोधी सरकार है. भाजपा सरकार ने गन्ना किसानों का कोई बकाया नहीं चुकाया है. यूपी की सरकार ने भी गन्ना किसानों का बकाया नहीं चुकाया है. यूपी में जब हमारी सरकार थी तब हमने गन्ना किसानों का बकाया अदा किया था.
उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार अगर किसी से गठबंधन कर लेती है तो यह साफ़ हो जाएगा कि उसने अपनी हार मान ली है. इस चुनाव में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव का खेमा एक दूसरे को हराएगा. मायावती ने कहा कि सपा सरकार ने अगर काम किया होता तो इन्हें गठबंधन बनाने की ज़रुरत नहीं पड़ती. उन्होंने अखिलेश यादव को सलाह दी कि बेहतर होगा कि परिवार के झगड़े के बीच वह कुछ समय उत्तर प्रदेश की समस्याओं से निबटने के लिए भी निकाल लिया करें.
उन्होंने कहा कि बीजेपी में इतने नामी गिरामी गुंडे हैं की नाम क्या गिनाऊं. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का खुद इतिहास है. उन्होंने कहा कि भाजपा की गुंडई की बात करें तो इसकी शुरुआत तो गुजरात से ही होती है.
मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया. उन्होंने कहा कि बसपा किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी.

लखनऊ : महागठबंधन पर नेताजी लेंगे फैसला: अखिलेश

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ब्रेक न्‍यूज ब्‍यूरो
लखनऊ: 
यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने सोमवार को कहा कि महागठबंधन पर फैसला सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव लेंगे। जो भी सुझाव मुझे देना है मैं पार्टी के सामने रखेंगे, जिस पर नेताजी विचार करेंगे।
सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि महागठबंधन को लेकर पार्टी फोरम में चर्चा होनी चाहिए। सीएम अखिलेश ने कहा इस बारे में उनकी नेताजी से बात हुई है और जो भी उनके विचार हैं वह पार्टी फौरुम पर रखेंगे।सीएम अखिलेश ने कहा कि महागठबंधन और दलों के जुड़ने की बात है इसको लेकर पार्टी में कई तरह की बात चल रही है। उन्‍होंने कहा कि किसको फायदा होगा किसको नुकसान होगा इसका आंकलन करके फैसला लेना होगा। जो भी सुझाव मुझे देना है मैं पार्टी के सामने रखेंगे, जिस पर नेताजी विचार करेंगे।

लखनऊ : यूपी के 6 जिलों में दिव्यांगों के लिए खुलेंगे समेकित विद्यालय : अखिलेश

Akhilesh
ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए खेल अकादमी की स्थापना में पूरी मदद करेगी। रविवार को इस बात की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि राज्य के छह जनपदों में दिव्यांगजन के लिए समेकित विद्यालय खोले जाएंगे। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा रविवार को यहां अपने सरकारी आवास-5, कालिदास मार्ग पर रियो पैरालंपिक 2016 की रजत पदक विजेता खिलाड़ी दीपा मलिक से भेंट के दौरान की।
यादव ने कहा कि खेलों के जरिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित होती है तथा पारस्परिक सद्भाव और भाईचारे में वृद्धि होती है। राज्य सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए लगातार गंभीर प्रयास कर रही है। प्रदेश में खेलों के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें पुरस्कृत, सम्मानित करने के साथ-साथ नौकरियों आदि के अधिक मौके उपलब्ध करा रही है।

लखनऊ : ये चेहरे तय करेंगे, यूपी में बनेगी किसकी सरकार

  • ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
  • 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए विकास से लेकर जाति-धर्म, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे हावी
  • अखिलेश यादव, मायावती, शीला दीक्षित अपनी-अपनी पार्टियों के लिए हैं सबसे बड़ा चुनावी चेहरा, भाजपा को नरेंद्र मोदी का सहारा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अगले साल यानि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कुछ महीनों बाद होने वाले ये चुनाव सिर्फ उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने की जंग नहीं है, बल्कि यूपी के जरिये 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महासंग्राम भी है। यही वजह है कि 403 सीट वाली यूपी विधानसभा के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भाजपा और कांग्रेस सभी ने जी-जान लगा दी है। जाहिर सी बात है कि यूपी की राजनीति में वोटरों के लिए प्रत्याशी के चेहरे यानि वो किसके नाम पर वोट देंगे, जैसी बातों का ख़ासा महत्व है, इसलिए चेहरे तय करने में भी पार्टियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। समाजवादी पार्टी में हाल के दिनों में जो भी घटनाक्रम चला है, उसके बावजूद ये तो तय है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही निर्विवाद रूप से चुनाव का चेहरा हैं। बसपा में मायावती हैं। कांग्रेस ने भी कई नामों पर मशक्कत करने के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। हालाँकि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी पीछे है। उसने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में किसी का भी नाम सार्वजानिक नहीं किया है। वैसे भाजपा में तो वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मांगे जा रहे हैं। इस चुनाव में भी उनका ही नाम प्रयोग होगा।
विधानसभा चुनाव
पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी को महत्व
बहरहाल चुनावी महासंग्राम की बिसातें बिछ चुकी हैं। नेता और पार्टियाँ आरोप-प्रत्यारोप, उपलब्धियां, खामियांगिनाने में जुट गई हैं। विरोधियों को घेरने के लिए चक्रव्यूह रचे जा रहे हैं। विकास कार्यों के साथ ही जाति-धर्म, रोजगार, महंगाई, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे हवाओं में चारो तरफ नजर आने लगे हैं। उत्तर प्रदेश सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती रहा है। इस चुनौती और उलझन का प्रमुख कारण है उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने ज्यादातर पार्टी प्रत्याशी के आधार पर राजनीतिक दलों को जनादेश दिया है। जैसे 2012 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की साइकिल यात्रा और मुलायम सिंह यादव की संगठन पर पकड़ के जरिये किये गए प्रयासों से सपा को जबरदस्त कामयाबी मिली। समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलालेकिन उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगे और भाजपा को यूपी में 90प्रतिशत सीटों पर भारी जीत मिली।मगर उसके बाद के उपचुनावों और स्थानीय चुनावों में सपा की पुनः वापसी हुई। यह आंकड़ा इस बात को बल देता है कि उत्तर प्रदेश में कोई भी पार्टी स्थाई नहीं है। 2017 का विधानसभा चुनाव सपा और बसपा के लिए सत्ता की लड़ाई है, परन्तु कांग्रेस और भाजपा के लिए यह प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
विधानसभा चुनाव
सभी पार्टियों के लिए चुनौती
बीते दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने तो अपनी सरकार के चार साल पूरे होने पर साइकिल यात्रा शुरू कर विकास योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की शुरूआत क्या की, बसपा, भाजपा और कांग्रेस में भी हलचल मच गई। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री मोदी जब अपनी केंद्र सरकार के दो साल पूरे होने पर बलिया में गरीब महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने की ‘उज्ज्वला’ योजना लॉन्च करने पहुंचे तो उन्होंने भाजपा सांसदों से कहा कि वे सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के अभियान में जुट जायें।
हर प्रत्याशी की अपनी प्राथमिकता
यकीनन सबसे बड़ा मुद्दा प्रदेश में विकास कार्य ही बनेंगे। हालाँकि हाल ही में सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक से पाक समर्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट करने का कुछ फायदा भाजपा को होते दिख रहा है लेकिन मायावती और चुनावी रणनीति के जानकार प्रशांत किशोर की जातीय गणित के सहारे कांग्रेस भी अपनी चुनावी नैया पार लगाने का फार्मूला अपनाने से नहीं चूक रही हैं। मायावती दलित और मुस्लिम वोटों के सहारे तो शीला दीक्षित ब्राह्मण वोटों पर ख़ास तौर पर निगाह लगाये हुए हैं। कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक हालाँकि रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होने का नुकसान तो कांग्रेस को उठाना ही पड़ेगा। मायावती तो बार-बार उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाकर लोगों को अहसास कराने की कोशिश कर रही हैं कि उनके शासनकाल में अपराध कम होते थे, वहीँ कांग्रेस ने राहुल की किसान यात्राओं के जरिये गाँव-गाँव तक में किसानों और वोटरों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है।
वास्तव में इस बार के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव एक बड़े युद्ध के रूप में तब्दील हो चुके हैं। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अब चुनाव भी तकनीक, आधुनिक विश्लेषण और सोशल मीडिया के प्रयोग के आधार पर लड़े जाते हैं। इसमें बसपा की तुलना में भाजपा, सपा और कांग्रेस की अच्छी पकड़ दिखती है। यूपी की सत्ता पाने की चाह रखने वाली पार्टियों की कोशिशों पर नजर डालें तो साम-दाम-दंड-भेद सब कुछ आजमाया जा रहा है। पार्टियों की तैयारियां खुद-ब-खुद ये हकीकत बयान करती हैं।
विधानसभा चुनाव

समाजवादी पार्टी – अखिलेश यादव के विकास कार्यों के बल पर फिर सत्ता का मजबूत दावा

2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जो सफलता मिली उसमें अखिलेश यादव की साफ़-सुथरी और छवि और सपा के पुराने जातीय समीकरण निर्णायक साबित हुए थे। पूर्ण बहुमत से सपा की सरकार बनी और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादवने बेहतरीन ढंग से यूपी की सत्ता चलाने की शुरुआत की। अखिलेश यादव ने विकास कार्यों पर जोर दिया और वो बात-बात में दावा करते हैं कि उनकी पार्टी ने जितने विकास कार्य कराये हैं, उतने कभी किसी पार्टी ने नहीं कराये।प्रदेश के नीतिकार और अर्थशास्त्री यह कहने से नहीं चूकते कि नारायण दत्त तिवारी के बाद प्रदेश को अखिलेश के रूप में पहला ऐसा मुख्यमंत्री मिला है, जो विकास के बारे में गंभीरता से सोच रहा है।हाल में हुए तमाम सर्वे में भी अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में लोगों ने सबसे ज्यादा पसंद किया है। आगे भी लोग उन्हें ही मुख्यमंत्री पद का सबसे परफेक्ट उम्मीदवार मानते हैं।
इसलिए अखिलेश हैं पहली पसंद
बात चाहे बिजली के क्षेत्र में सुधार की हो या मेट्रो ट्रेन की, स्पोर्ट्स स्टेडियम, लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे, बलिया लखनऊ एक्सप्रेस वे, समाजवादी लैपटॉप, मोबाइल, कन्या विद्या धन, समाजवादी पेंशन, एम्बुलेंस जैसी ढेरों विकास योजनाएं प्रदेशवासियों के हित में हैं। ये सभी अखिलेश यादव के चुनावी एजेंडे में शामिल हैं। मगर इन सबके बावजूद इस बार के चुनाव में अखिलेश यादव के सामने ढेरों चुनौतियाँ हैं। मुलायम सिंह यादव के परिवार में पिछले कुछ महीनों से लगातार जो घटनाएं घटी हैं, वो किसी से छिपी नहीं हैं। हर स्तर पर परिवार में एकता के बयान जरूर दिए जा रहे हैं लेकिन जो कुछ दिख रहा है उसे विरोधी दलों के साथ ही आम वोटरों तक के लिए समझना मुश्किल नहीं है। कानून-व्यवस्था का मुद्दा अखिलेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सभी विरोधी दल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं तो बसपा प्रमुख मायावती तो इस मुद्दे पर एकदम हमलावर हैं।
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अखिलेश की साफ़-सुथरी छवि बड़ा सहारा
अखिलेश यादव और मुख्तार अंसारी प्रकरण से ये साफ़ जाहिर है कि मुख्यमंत्री अपनी छवि को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं और अपनी छवि को एक ऐसे युवा नेता के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं जो स्वच्छ राजनीति का पक्षधर है और राज्य को धर्म और जाति के बंधनों से मुक्त कर केवल विकास की बात करना चाहता है। अखिलेश यादव का मुख्य फोकस पहली बार वोट डालने वाले और युवा वर्ग हैं, जोकि मतदाताओं का लगभग 30प्रतिशत है। उनके पिता और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव राज्य के उन अनुभवी नेताओं में से एक हैं जिनको प्रत्येक सीट के जातीय समीकरण की सटीक जानकारी है और संगठन पर भी वे मजबूत पकड़ रखते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीते दिनों सपा दो चरणों में मुलायम संदेश यात्रा पर अपनी चुनावी कसरत कर चुकी है। वहीं आगामी दिनों में भी तीसरे चरण की मुलायम संदेश यात्रा वाराणसी से निकालने जा रही है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
मुजफ्फर नगर दंगे से लेकर, मथुरा का जवाहरबाग काण्ड लोगों के जेहन से मिटाने की चुनौती भी अखिलेश यादव को झेलनी होगी।उनके लिए एक बड़ी चुनौती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमीन मजबूत करने की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जहां भाजपा की ओर खिसका है, वहीं सपा के भाजपा के प्रति नरम पड़ने के कारण अल्पसंख्यक वोट भी उससे छिटक रहा है. अल्पसंख्यक कहां जायेगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन सपा को छोड़ने के बाद उसकी प्राथमिकता में बसपा सबसे ऊपर और फिर कांग्रेसआयेगी।
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बसपा : मायावती का सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला हिट कराने की जद्दोजहद

बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी से ही सपा ने 2012 चुनाव में सत्ता जीती थी। इसलिए बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती इस बार हर हाल में यूपी की बादशाहत चाहती हैं। दो बड़े नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी जैसे नेताओं के बसपा छोड़ने से पार्टी को झटका जरूर लगा है।स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी ने जोरदार झटका देते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया है। मायावती पर इन्होंने पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया। इन नेताओं के विद्रोही होने की वजह से बसपा का आंतरिक संकट गहराया है। पार्टी नेता मानते हैं कि इनके जाने से बसपा के राजनीतिक माहौल पर असर पड़ा है। खुद मायावती डैमेज कंट्रोल करने के लिए आगे आयीं और इसे विपक्षी दलों का षड्यंत्र बताया।हालांकि, बसपा में पहली बार ऐसा संकट नहीं आया है, लेकिन इतिहास बताता है कि हर टूट के बाद बसपा कहीं ज्यादा ताकतवर होकर उभरी है। स्वामी प्रसाद मौर्य यह दावा कर रहे हैं कि वह बसपा को उखाड़ फेकेंगेलेकिन, चार बार पहले मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती न तो पार्टी के बिखराव से चिंतित हैं, न दलित वोटों को लेकर।
सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश
मायावती की बसपा राज्य में सपा कि सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में बनाने कि कोशिश में है और कुछ सर्वेक्षणों ने उसे लाभ की स्थिति में दिखाया भी था परन्तु मायावती के समीकरण बीजेपी की आक्रामक रणनीति के कारण टूट रहे हैं। लोकसभा चुनाव इसका प्रमाण है। आंकड़ो कि मानें तो लोकसभा में ब्राह्मणों के 72प्रतिशत वोट भाजपा के खाते में गए थे और सिर्फ पांच प्रतिशत बसपा को मिले थे। मायावती चाहे लाख दावे कर लें कि स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी के पार्टी छोड़ने से को फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन सच्चाई यही है कि इससे बड़ी मात्रा में मौर्य और पासी वोट प्रभावित होंगे।
दलित-ब्राह्मण वोट पर फोकस
मायावती को लोकसभा चुनावों की हार का भी कोई गम नहीं। उनकी चिंता दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग को लेकर है, जिसने 2007 में उन्हें बहुमत दिलाया था।अगर उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ा वर्ग आख़िरी पंक्ति के वोटर माने जाते हैं तो ब्राह्मण पहली पंक्ति के।उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी कुल आबादी की 10 फ़ीसदी है। 2007 के चुनाव में मायावती ने कुछ ब्राह्मण मतों को अपनी ओर करने में कामयाबी हासिल की थी।2007 में पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा की ओर बढ़ी।वो इसे लेकर इतनी गंभीर थी कि उन्होंने नगालैंड के कोहिमा में भी एक रैली कर डाली। 2009 के आम चुनाव में ब्राह्मणों ने मायावती का साथ नहीं दिया और कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया।ऐसे तो किसी पार्टी के जीतने और हारने की कई वजहें होती हैं, लेकिन 2009 में बसपा की हार में इसकी एक भूमिका ज़रूर थी।
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मायावती पार्टी का एक मात्र चेहरा
मायावती जानती हैं कि जब तक दलितों के साथ कोई और जाति बसपा से न जुड़े, वह विजय नहीं पा सकती। फिलहाल न तो ब्राह्मणजुड़ रहे हैं, न मुसलमान और न पिछड़े। डॉ बाबा साहब अम्बेडकर के नाम पर सियासत करनेवाली मायावती को उनके विरोधी दौलत की देवी बता कर तंज कसते हैं, लेकिन इस सच ये है कि मायावती ने  अनेक दलितों और वंचितों को दोबारा पहचान दिलायी। दलित उत्थान में योगदान करनेवाले कई सामाजिक क्षत्रपों की मूर्तियां इतिहास के पन्नों से निकल कर 21वीं सदी में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं, तो यूपी में इसकी वजह मायावती ही हैं। 2007 के पहले मायावती दलितों को यह कहा करती थीं कि वह दलितों व पिछड़ों का विकास इसलिए नहीं कर पायीं, क्योंकि उन्हें बीजेपी के सहयोग से सरकार चलानी पड़ी और यह पार्टी इन वर्गों की दुश्मन है। बहुमत मिलने पर वह इस वर्ग का कायाकल्प कर देंगी। वर्ष 2007 में बसपा की सरकार आयी, तो उसके समर्थकों ने देखा कि सत्ता के दलाल कमजोर होने के बजाय कैसे और मजबूत हुए। सरकारी भर्तियों में धन का खेल हुआ। बसपा 2012 में लोगों को नहीं बता सकी थी कि दलितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए उसने कौन से काम किये।
कड़ा है मुकाबला
मुख्यमंत्री बनने के लिए मायावती को भाजपा और सपा का मुकाबला करना है। मायावती ने संभावित उम्मीदवारों को विधानसभा प्रभारी बना कर बूथ स्तर तक पार्टी कार्यकर्ताओं को तैनात कर दिया है. लोगों को ये सपा और भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों और बढ़ती महंगाई के बारे में बताते हुए मायावती को फिर से सत्ता में लाने की अपील कर रहे हैं। इस बार वे मूर्तियों और स्मारकों से दूर रहते हुए विकास और कानून व्यवस्था को तरजीह देने की बातें कह रही हैं।2007 में उन्हें सत्ता में लाने में मुसलमानों व कुछ हद तक ब्राह्मणों का योगदान माना जाता है, जिसे वह दोहराना चाहती हैं। वे जानती हैं कि बीते लोकसभा चुनावों में मुसलिम और ब्राह्मण वोटबैंक के पार्टी से दूर होने के चलते ही बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। अब वह सर्वसमाज के नारे को हवा दे रही हैं। सपा शासनकाल में दलितों के साथ भेदभाव और प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त करना बसपा के लिए बड़ा मुद्दा होगा।

लखनऊ : ये चेहरे तय करेंगे, यूपी में बनेगी किसकी सरकार

  • ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
  • 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए विकास से लेकर जाति-धर्म, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे हावी
  • अखिलेश यादव, मायावती, शीला दीक्षित अपनी-अपनी पार्टियों के लिए हैं सबसे बड़ा चुनावी चेहरा, भाजपा को नरेंद्र मोदी का सहारा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अगले साल यानि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कुछ महीनों बाद होने वाले ये चुनाव सिर्फ उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने की जंग नहीं है, बल्कि यूपी के जरिये 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महासंग्राम भी है। यही वजह है कि 403 सीट वाली यूपी विधानसभा के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भाजपा और कांग्रेस सभी ने जी-जान लगा दी है। जाहिर सी बात है कि यूपी की राजनीति में वोटरों के लिए प्रत्याशी के चेहरे यानि वो किसके नाम पर वोट देंगे, जैसी बातों का ख़ासा महत्व है, इसलिए चेहरे तय करने में भी पार्टियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। समाजवादी पार्टी में हाल के दिनों में जो भी घटनाक्रम चला है, उसके बावजूद ये तो तय है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही निर्विवाद रूप से चुनाव का चेहरा हैं। बसपा में मायावती हैं। कांग्रेस ने भी कई नामों पर मशक्कत करने के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। हालाँकि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी पीछे है। उसने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में किसी का भी नाम सार्वजानिक नहीं किया है। वैसे भाजपा में तो वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मांगे जा रहे हैं। इस चुनाव में भी उनका ही नाम प्रयोग होगा।
विधानसभा चुनाव
पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी को महत्व
बहरहाल चुनावी महासंग्राम की बिसातें बिछ चुकी हैं। नेता और पार्टियाँ आरोप-प्रत्यारोप, उपलब्धियां, खामियांगिनाने में जुट गई हैं। विरोधियों को घेरने के लिए चक्रव्यूह रचे जा रहे हैं। विकास कार्यों के साथ ही जाति-धर्म, रोजगार, महंगाई, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे हवाओं में चारो तरफ नजर आने लगे हैं। उत्तर प्रदेश सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती रहा है। इस चुनौती और उलझन का प्रमुख कारण है उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने ज्यादातर पार्टी प्रत्याशी के आधार पर राजनीतिक दलों को जनादेश दिया है। जैसे 2012 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की साइकिल यात्रा और मुलायम सिंह यादव की संगठन पर पकड़ के जरिये किये गए प्रयासों से सपा को जबरदस्त कामयाबी मिली। समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलालेकिन उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगे और भाजपा को यूपी में 90प्रतिशत सीटों पर भारी जीत मिली।मगर उसके बाद के उपचुनावों और स्थानीय चुनावों में सपा की पुनः वापसी हुई। यह आंकड़ा इस बात को बल देता है कि उत्तर प्रदेश में कोई भी पार्टी स्थाई नहीं है। 2017 का विधानसभा चुनाव सपा और बसपा के लिए सत्ता की लड़ाई है, परन्तु कांग्रेस और भाजपा के लिए यह प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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सभी पार्टियों के लिए चुनौती
बीते दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने तो अपनी सरकार के चार साल पूरे होने पर साइकिल यात्रा शुरू कर विकास योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की शुरूआत क्या की, बसपा, भाजपा और कांग्रेस में भी हलचल मच गई। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री मोदी जब अपनी केंद्र सरकार के दो साल पूरे होने पर बलिया में गरीब महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने की ‘उज्ज्वला’ योजना लॉन्च करने पहुंचे तो उन्होंने भाजपा सांसदों से कहा कि वे सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के अभियान में जुट जायें।
हर प्रत्याशी की अपनी प्राथमिकता
यकीनन सबसे बड़ा मुद्दा प्रदेश में विकास कार्य ही बनेंगे। हालाँकि हाल ही में सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक से पाक समर्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट करने का कुछ फायदा भाजपा को होते दिख रहा है लेकिन मायावती और चुनावी रणनीति के जानकार प्रशांत किशोर की जातीय गणित के सहारे कांग्रेस भी अपनी चुनावी नैया पार लगाने का फार्मूला अपनाने से नहीं चूक रही हैं। मायावती दलित और मुस्लिम वोटों के सहारे तो शीला दीक्षित ब्राह्मण वोटों पर ख़ास तौर पर निगाह लगाये हुए हैं। कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक हालाँकि रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होने का नुकसान तो कांग्रेस को उठाना ही पड़ेगा। मायावती तो बार-बार उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाकर लोगों को अहसास कराने की कोशिश कर रही हैं कि उनके शासनकाल में अपराध कम होते थे, वहीँ कांग्रेस ने राहुल की किसान यात्राओं के जरिये गाँव-गाँव तक में किसानों और वोटरों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है।
वास्तव में इस बार के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव एक बड़े युद्ध के रूप में तब्दील हो चुके हैं। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अब चुनाव भी तकनीक, आधुनिक विश्लेषण और सोशल मीडिया के प्रयोग के आधार पर लड़े जाते हैं। इसमें बसपा की तुलना में भाजपा, सपा और कांग्रेस की अच्छी पकड़ दिखती है। यूपी की सत्ता पाने की चाह रखने वाली पार्टियों की कोशिशों पर नजर डालें तो साम-दाम-दंड-भेद सब कुछ आजमाया जा रहा है। पार्टियों की तैयारियां खुद-ब-खुद ये हकीकत बयान करती हैं।
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समाजवादी पार्टी – अखिलेश यादव के विकास कार्यों के बल पर फिर सत्ता का मजबूत दावा

2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जो सफलता मिली उसमें अखिलेश यादव की साफ़-सुथरी और छवि और सपा के पुराने जातीय समीकरण निर्णायक साबित हुए थे। पूर्ण बहुमत से सपा की सरकार बनी और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादवने बेहतरीन ढंग से यूपी की सत्ता चलाने की शुरुआत की। अखिलेश यादव ने विकास कार्यों पर जोर दिया और वो बात-बात में दावा करते हैं कि उनकी पार्टी ने जितने विकास कार्य कराये हैं, उतने कभी किसी पार्टी ने नहीं कराये।प्रदेश के नीतिकार और अर्थशास्त्री यह कहने से नहीं चूकते कि नारायण दत्त तिवारी के बाद प्रदेश को अखिलेश के रूप में पहला ऐसा मुख्यमंत्री मिला है, जो विकास के बारे में गंभीरता से सोच रहा है।हाल में हुए तमाम सर्वे में भी अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में लोगों ने सबसे ज्यादा पसंद किया है। आगे भी लोग उन्हें ही मुख्यमंत्री पद का सबसे परफेक्ट उम्मीदवार मानते हैं।
इसलिए अखिलेश हैं पहली पसंद
बात चाहे बिजली के क्षेत्र में सुधार की हो या मेट्रो ट्रेन की, स्पोर्ट्स स्टेडियम, लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे, बलिया लखनऊ एक्सप्रेस वे, समाजवादी लैपटॉप, मोबाइल, कन्या विद्या धन, समाजवादी पेंशन, एम्बुलेंस जैसी ढेरों विकास योजनाएं प्रदेशवासियों के हित में हैं। ये सभी अखिलेश यादव के चुनावी एजेंडे में शामिल हैं। मगर इन सबके बावजूद इस बार के चुनाव में अखिलेश यादव के सामने ढेरों चुनौतियाँ हैं। मुलायम सिंह यादव के परिवार में पिछले कुछ महीनों से लगातार जो घटनाएं घटी हैं, वो किसी से छिपी नहीं हैं। हर स्तर पर परिवार में एकता के बयान जरूर दिए जा रहे हैं लेकिन जो कुछ दिख रहा है उसे विरोधी दलों के साथ ही आम वोटरों तक के लिए समझना मुश्किल नहीं है। कानून-व्यवस्था का मुद्दा अखिलेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सभी विरोधी दल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं तो बसपा प्रमुख मायावती तो इस मुद्दे पर एकदम हमलावर हैं।
विधानसभा चुनाव
अखिलेश की साफ़-सुथरी छवि बड़ा सहारा
अखिलेश यादव और मुख्तार अंसारी प्रकरण से ये साफ़ जाहिर है कि मुख्यमंत्री अपनी छवि को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं और अपनी छवि को एक ऐसे युवा नेता के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं जो स्वच्छ राजनीति का पक्षधर है और राज्य को धर्म और जाति के बंधनों से मुक्त कर केवल विकास की बात करना चाहता है। अखिलेश यादव का मुख्य फोकस पहली बार वोट डालने वाले और युवा वर्ग हैं, जोकि मतदाताओं का लगभग 30प्रतिशत है। उनके पिता और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव राज्य के उन अनुभवी नेताओं में से एक हैं जिनको प्रत्येक सीट के जातीय समीकरण की सटीक जानकारी है और संगठन पर भी वे मजबूत पकड़ रखते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीते दिनों सपा दो चरणों में मुलायम संदेश यात्रा पर अपनी चुनावी कसरत कर चुकी है। वहीं आगामी दिनों में भी तीसरे चरण की मुलायम संदेश यात्रा वाराणसी से निकालने जा रही है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
मुजफ्फर नगर दंगे से लेकर, मथुरा का जवाहरबाग काण्ड लोगों के जेहन से मिटाने की चुनौती भी अखिलेश यादव को झेलनी होगी।उनके लिए एक बड़ी चुनौती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमीन मजबूत करने की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जहां भाजपा की ओर खिसका है, वहीं सपा के भाजपा के प्रति नरम पड़ने के कारण अल्पसंख्यक वोट भी उससे छिटक रहा है. अल्पसंख्यक कहां जायेगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन सपा को छोड़ने के बाद उसकी प्राथमिकता में बसपा सबसे ऊपर और फिर कांग्रेसआयेगी।
विधानसभा चुनाव

बसपा : मायावती का सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला हिट कराने की जद्दोजहद

बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी से ही सपा ने 2012 चुनाव में सत्ता जीती थी। इसलिए बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती इस बार हर हाल में यूपी की बादशाहत चाहती हैं। दो बड़े नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी जैसे नेताओं के बसपा छोड़ने से पार्टी को झटका जरूर लगा है।स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी ने जोरदार झटका देते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया है। मायावती पर इन्होंने पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया। इन नेताओं के विद्रोही होने की वजह से बसपा का आंतरिक संकट गहराया है। पार्टी नेता मानते हैं कि इनके जाने से बसपा के राजनीतिक माहौल पर असर पड़ा है। खुद मायावती डैमेज कंट्रोल करने के लिए आगे आयीं और इसे विपक्षी दलों का षड्यंत्र बताया।हालांकि, बसपा में पहली बार ऐसा संकट नहीं आया है, लेकिन इतिहास बताता है कि हर टूट के बाद बसपा कहीं ज्यादा ताकतवर होकर उभरी है। स्वामी प्रसाद मौर्य यह दावा कर रहे हैं कि वह बसपा को उखाड़ फेकेंगेलेकिन, चार बार पहले मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती न तो पार्टी के बिखराव से चिंतित हैं, न दलित वोटों को लेकर।
सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश
मायावती की बसपा राज्य में सपा कि सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में बनाने कि कोशिश में है और कुछ सर्वेक्षणों ने उसे लाभ की स्थिति में दिखाया भी था परन्तु मायावती के समीकरण बीजेपी की आक्रामक रणनीति के कारण टूट रहे हैं। लोकसभा चुनाव इसका प्रमाण है। आंकड़ो कि मानें तो लोकसभा में ब्राह्मणों के 72प्रतिशत वोट भाजपा के खाते में गए थे और सिर्फ पांच प्रतिशत बसपा को मिले थे। मायावती चाहे लाख दावे कर लें कि स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी के पार्टी छोड़ने से को फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन सच्चाई यही है कि इससे बड़ी मात्रा में मौर्य और पासी वोट प्रभावित होंगे।
दलित-ब्राह्मण वोट पर फोकस
मायावती को लोकसभा चुनावों की हार का भी कोई गम नहीं। उनकी चिंता दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग को लेकर है, जिसने 2007 में उन्हें बहुमत दिलाया था।अगर उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ा वर्ग आख़िरी पंक्ति के वोटर माने जाते हैं तो ब्राह्मण पहली पंक्ति के।उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी कुल आबादी की 10 फ़ीसदी है। 2007 के चुनाव में मायावती ने कुछ ब्राह्मण मतों को अपनी ओर करने में कामयाबी हासिल की थी।2007 में पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा की ओर बढ़ी।वो इसे लेकर इतनी गंभीर थी कि उन्होंने नगालैंड के कोहिमा में भी एक रैली कर डाली। 2009 के आम चुनाव में ब्राह्मणों ने मायावती का साथ नहीं दिया और कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया।ऐसे तो किसी पार्टी के जीतने और हारने की कई वजहें होती हैं, लेकिन 2009 में बसपा की हार में इसकी एक भूमिका ज़रूर थी।
विधानसभा चुनाव
मायावती पार्टी का एक मात्र चेहरा
मायावती जानती हैं कि जब तक दलितों के साथ कोई और जाति बसपा से न जुड़े, वह विजय नहीं पा सकती। फिलहाल न तो ब्राह्मणजुड़ रहे हैं, न मुसलमान और न पिछड़े। डॉ बाबा साहब अम्बेडकर के नाम पर सियासत करनेवाली मायावती को उनके विरोधी दौलत की देवी बता कर तंज कसते हैं, लेकिन इस सच ये है कि मायावती ने  अनेक दलितों और वंचितों को दोबारा पहचान दिलायी। दलित उत्थान में योगदान करनेवाले कई सामाजिक क्षत्रपों की मूर्तियां इतिहास के पन्नों से निकल कर 21वीं सदी में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं, तो यूपी में इसकी वजह मायावती ही हैं। 2007 के पहले मायावती दलितों को यह कहा करती थीं कि वह दलितों व पिछड़ों का विकास इसलिए नहीं कर पायीं, क्योंकि उन्हें बीजेपी के सहयोग से सरकार चलानी पड़ी और यह पार्टी इन वर्गों की दुश्मन है। बहुमत मिलने पर वह इस वर्ग का कायाकल्प कर देंगी। वर्ष 2007 में बसपा की सरकार आयी, तो उसके समर्थकों ने देखा कि सत्ता के दलाल कमजोर होने के बजाय कैसे और मजबूत हुए। सरकारी भर्तियों में धन का खेल हुआ। बसपा 2012 में लोगों को नहीं बता सकी थी कि दलितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए उसने कौन से काम किये।
कड़ा है मुकाबला
मुख्यमंत्री बनने के लिए मायावती को भाजपा और सपा का मुकाबला करना है। मायावती ने संभावित उम्मीदवारों को विधानसभा प्रभारी बना कर बूथ स्तर तक पार्टी कार्यकर्ताओं को तैनात कर दिया है. लोगों को ये सपा और भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों और बढ़ती महंगाई के बारे में बताते हुए मायावती को फिर से सत्ता में लाने की अपील कर रहे हैं। इस बार वे मूर्तियों और स्मारकों से दूर रहते हुए विकास और कानून व्यवस्था को तरजीह देने की बातें कह रही हैं।2007 में उन्हें सत्ता में लाने में मुसलमानों व कुछ हद तक ब्राह्मणों का योगदान माना जाता है, जिसे वह दोहराना चाहती हैं। वे जानती हैं कि बीते लोकसभा चुनावों में मुसलिम और ब्राह्मण वोटबैंक के पार्टी से दूर होने के चलते ही बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। अब वह सर्वसमाज के नारे को हवा दे रही हैं। सपा शासनकाल में दलितों के साथ भेदभाव और प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त करना बसपा के लिए बड़ा मुद्दा होगा।

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SC ने पब्लिक सर्वेंट की तत्काल अरेस्टिंग पर लगाई रोक, कहा-इस एक्ट का हो रहा है दुरुपयोग

टीम ब्रेक न्यूज ब्यूरो  नई दिल्ली. एससी-एसटी एक्ट के तहत मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने नई गाइडलाइंस जारी की हैं. एक याचिका पर सुनवाई के दौ...