Sunday, August 13, 2017

'मुख्यमंत्री योगी नहीं आते तो शायद जिंदा होता मेरा मासूम बेटा!'एक पिता का दर्द

9 अगस्त को भी सीएम ने किया था दौरा
टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
गोरखपुर के BRD अस्पताल में मासूमों की मौत के बाद दर्दनाक और डरा देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं. ऐसी ही एक कहानी दीपक की है जिसकी इसी अस्पताल में जान चली गई. दीपक का परिवार टकटकी लगाए बैठा हुआ है. 9 अगस्त के बाद परिजनों की जिंदगी मानो थम सी गई हो. इस दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोरखपुर आए थे और गोरखपुर में उन्होंने बीआरडी मेडिकल कॉलेज का दौरा भी किया था.दीपक के पिता बहादुर को क्या मालूम था कि जिंदगी उनके साथ इतना भद्दा मजाक करेगी. उनके 4 साल के बेटे दीपक की तबीयत खराब हुई तो पत्नी भागी-भागी डॉक्टर के पास गई. दीपक का बदन जल रहा था लेकिन डॉक्टर की दुकान बंद थी. तो फिर वह BRD मेडिकल कॉलेज चली आईं. लेकिन उस दिन तो मेडिकल कॉलेज में वीवीआईपी दिन था. सूबे के सीएम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज के दौरे पर जो आए थे.बहादुर की माने तो दीपक की हालत बेहद नाजुक थी. उसकी मां ढाई बजे से लेकर शाम 6 बजे तक दीपक के इलाज के लिए डॉक्टरों से गुहार लगाती रही लेकिन VVIP सेवा में व्यस्त डॉक्टरों के पास वक्त कहां था. दीपक के परिवार का आरोप है कि 10 तारीख को सुबह 10 बजे दीपक की मौत अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से हुई है. लेकिन समय जब बुरा होता है तो हर एक घड़ी भारी हो जाती है. दीपक के जाने के बाद अब उसके छोटे भाई की तबीयत काफी खराब है, ऐसे में अब यह लोग सरकारी अस्पताल की जगह प्राइवेट अस्पताल में बच्चे का इलाज करा रहे हैं भले ही उसके लिए इनको कलेजा काट कर पैसा क्यों ना देना पड़े.गोरखपुर में अस्पताल में कथित ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौतें हुई हैं, हालांकि सरकार बिना जांच किए इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. सीएम योगी ने अस्पताल के प्रिसिंपल राजीव मिश्रा और सुपरिटेंडेंट और वाइस प्रिंसिपल डॉक्टर कफील खान को पद हटा दिया गया है. साथ ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी इस मामले की जांच करेगी.

आखिर जागी सरकार, 64 मासूमों की मौत के कितने गुनहगार?

 BRD मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत से कोहराम
टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
गोरखपुर में बच्चों की मौत पर सवाल कराह रहे हैं, आरोप तड़प रहे हैं, चीखे दिल्ली लखनऊ तक पहुंच रही है और इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर पहुंचे. संवेदनशीलता भरा बयान दिया. डॉक्टरों की क्लास ली लेकिन आरोप-प्रत्यारोप के बीच मां बाप की चीखें इंसाफ के लिए दम तोड़ती दिखीं.आखिरकार सरकार को उस प्रजा की याद आ गई, जिनके मासूमों ने उनके राज में तड़प-तड़कर जान दे दी थी. मुन्नु, चुन्नु, गुड़िया, मुनिया नांम भले कुछ भी हों लेकिन क्या योगी का दौरा उन मां बाप के जख्मों पर मरहम का काम नहीं कर सकेगा, मुख्यमंत्री की आंखें भी गीली थीं. लेकिन काश सरकार की आंखें पहले खुल जाती तो 64 बच्चे आज य़हीं कहीं सेहतमंद हो रहे होते. खैर दो दिन के बाद योगी जी आए. साथ में दिल्ली से देश के सेहत की फिक्र करने वाले स्वास्थय मंत्री जेपी नड्डा भी थे. कलेजा चाक कर देने वाले रूदन के बीच मंत्री- मुख्यमंत्री की साझा जोड़ी ने इमोशन के ऑक्सीजन का प्रवाह चालू कर दिया.
गोरखपुर में बोलते-बोलते हुए भावुक हुए योगी
सीएम योगी ने इंसेफेलाइटिस के खिलाफ अपनी लड़ाई के बारे में भावुक अंदाज में जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने बच्चों को मरते हुए देखा है। उन्होंने कहा 'इस मुद्दे पर मुझसे अधिक संवेदनशील और कौन हो सकता है. मैंने इस मुद्दे को सड़क से संसद तक उठाया है. इस बीमारी की पीड़ा मुझसे ज्यादा और कौन समझेगा.' मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि प्रदेश के 35 जिलों में 90 लाख से ज्यादा बच्चों के टीकाकरण का सघन अभियान शुरू किया गया है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर मेडिकल कॉलेज का यह उनका चौथा दौरा है.योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल में हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत का कारण बनने वाले मस्तिष्क ज्वर पर गहन शोध के लिए एक क्षेत्रीय वायरस अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि ऐसा किए बगैर इस जानलेवा बीमारी के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती. मुख्यमंत्री ने कहा 'पूर्वी उत्तर प्रदेश की बनावट ऐसी है कि हम संचारी रोगों से लड़ाई को तब तक नहीं जीत सकते जब तक यहां पूर्णकालिक वायरस रिसर्च सेंटर नहीं बन जाता. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोरखपुर को एम्स दिया है लेकिन यहां पूर्णकालिक वायरस रिसर्च सेंटर भी होना चाहिए.'योगी ने बताया कि प्रदेश के मुख्य सचिव और केन्द्रीय सचिव इस घटना की जांच करके रिपोर्ट देंगे. दिल्ली की उच्च स्तरीय टीमभी पूरे मामले की जांच कर रही हैं. रिपोर्ट आते ही घटना में संलिप्त लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी, जिम्मेदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा.
केंद्रीय मंत्री नड्डा भी पहुंचे गोरखपुर  
वहीं केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मांग पर गोरखपुर में मष्तिष्क ज्वर रोग पर गहराई से शोध के लिए एक 'रीजनल वायरस रिसर्च सेंटर' स्थापित होगा. केन्द्र सरकार इसके लिए 85 करोड़ रुपये देगी. उन्होंने कहा कि योगी इंसेफलाइटिस के उन्मूलन के लिए संवेदनशील हैं. उनके ही प्रयास से राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान में इंसेफलाइटिस रोधी टीकाकरण को जोड़ा गया है. गोरखपुर में अनुसंधान केन्द्र बन जाने से इस बीमारी पर रोक लगाने में सफलता मिलेगी. यह केंद्र पूर्ण विकसित होगा जिससे बच्चों में होने वाले अन्य रोगों के निदान में भी मदद मिलेगी.दरअसल दो दिन पहले अस्पताल में बच्चे की सांसे घुट रही होगीं. मां-बाप बेबसी में हाथ मसल रहे होंगे, कुछ गुस्से में सर पटक रहे होंगे. खैर ऑक्सीजन सिलेंडर लोहे के ताबूत जैसे खड़े रह गए. मशीनें हांफते-कांपते सरेंडर करने लगीं. मासूमों के ताबूत का बोझ कोई पत्थर दिल भी शायद ही अपने कांधों पर उठा सके, अब जांच होगी, पड़ताल होगी, केस मुकदमे होंगे, कसूरवार तय होगा, मुजरिम पेश होगा, सुनवाई होगी, जिरह होगी, फैसला होगा और सजा भी मिल जाएगी.आज योगी के सामने सब मौजूद थे डॉक्टर, नर्स, अफसर, वार्ड बॉय. उस दिन भी सब मौजूद थे लेकिन तब के जिंदा बच्चे आज हमेशा के लिए छुपाछुपी में कहीं गहरे काले घने साए में हमेशा के लिए छिप गए थे. निर्देशों के तूफान के बीच ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का हिसाब किताब हो रहा है. पुलिस से लेकर सरकार तक जांच के मैदान-ए-जंग में योद्दा बने बैठे हैं और मेडिकल कॉलज के प्रिंसिपल साहब आरोपों की सर्जरी कर रहे हैं.अब बीआरडी अस्पताल में सरकार ने सब ठीक कर दिया है. ऑक्सीजन की कमी नहीं है. बच्चे सुरक्षित हाथों में हैं. कंपनी को पैसे की कमी नहीं होगी. योगी के दौरे पर बदलाव की टॉनिक के साथ अस्पताल का हाल कुछ यूं था. अस्पताल, अफसर, डॉक्टर, कंपनी, लेटलतीफी के चक्रव्य़ूह में बच्चे ऐसे फंसे कि बचे नहीं लेकिन सवाल ये है कि सिस्टम को ऑक्सीजन कौन देगा. क्या सिस्टम भी बच्चों की तरह तड़पकर दम तोड़ देगा?

शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का वेतन देगी सरकार, मानदेय पर अभी भी संशय बरकरार

टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किए गए शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का समायोजित पद का वेतन दिया जाएगा। इस बाबत बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव संजय सिन्हा ने आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।
इस आदेश के बाद यह तो साफ हो गया है कि 25 जुलाई के बाद से शिक्षामित्रों को मानदेय से ही संतोष करना पड़ेगा लेकिन मानदेय कितना होगा, यह विभाग ने अब तक स्पष्ट नहीं किया है। हालांकि समायोजन से पूर्व शिक्षामित्रों को 3500 रुपये मानदेय दिया जा रहा था।
प्रदेश में तकरीबन एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत इन सभी शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद समायोजन निरस्त कर दिया गया है।
न्यायालय के आदेश के बाद तमाम जनपदों से उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव को पत्र भेजकर पूछा गया था कि शिक्षामित्रों को समायोजित पद का वेतन देना है या नहीं और देना है तो किस तिथि तक वेतन का भुगतान होना है।मामले में सचिव संजय सिन्हा ने स्थिति स्पष्ट करते हुए दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 25 जुलाई को दोपहर के वक्त आया था। इसलिए सहायक अध्यापक पद पर समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का वेतन भुगतान किया जा सकता है।सचिव ने सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों और बेसिक शिक्षा के वित्त एवं लेखाधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं कि वेतन भुगतान अविलंब कर दिया जाएगा।हालांकि इस बाबत स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है कि शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद का वेतन भुगतान बंद होने के बाद कितना मानदेय मिलेगा। हालांकि समायोजन से पूर्व उन्हें प्रतिमाह 3500 रुपये मानदेय के रूप में दिए जा रहे थे।बीते 26 जुलाई को अच्छे शिक्षको की नितांत आवश्यकता बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बतौर सहायक शिक्षक शिक्षामित्रों के समायोजन को निरस्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया था।हालांकि शीर्ष अदालत ने शिक्षामित्रों को राहत देते हुए कहा था कि अगर ये शिक्षामित्र टीईटी (सहायक शिक्षक के लिए जरूरी अर्हता) पास हैं या भविष्य में पास कर लेते हैं तो सहायक शिक्षकों के लिए होने वाली दो नियुक्ति प्रक्रिया में उन पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकार चाहे तो समायोजन के पूर्व की स्थिति में शिक्षामित्रों की सेवा जारी रख सकती है।
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को तो सही ठहराया लेकिन कहा कि सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजित किए गए शिक्षामित्रों को रियायत मिलनी चाहिए।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए सहायक शिक्षकों की होने वाली दो लगातार नियुक्ति प्रक्रियाओं में टीईटी पास शिक्षामित्रों पर विचार किया चाहिए। संबंधित अथॉरिटी चाहे तो इसमें शिक्षामित्रों को आयुसीमा में छूट दे सकती है और उनके तजुर्बे को वेटेज दे सकती है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को उत्तर प्रदेश के 1.78 लाख शिक्षामित्रों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 सिंतबर 2015 को इन शिक्षामित्रों का सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद्द कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

गोरखपुर : बच्चों की लाशें छिपाकर दूसरे दरवाजे से बाहर भेजा गया : अखिलेश

टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो  
पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में सरकार की लापरवाही से बच्चों की जान गई है। सरकार ने मौत के आंकड़े ही नहीं, घटना को छिपाने की भी कोशिश की। उन्होंने सवाल उठाया कि 9 अगस्त को गोरखपुर में मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक में आक्सीजन की कमी का मामला क्यों सामने नहीं आया ?सपा के प्रदेश कार्यालय में मीडिया से मुखातिब अखिलेश यादव ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की अगुवाई में गोरखपुर भेजी गई सपा की जांच टीम अपनी रिपोर्ट पार्टी और सरकार दोनों को देगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया कि आक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई हैं। जबकि, हकीकत यह है कि आक्सीजन की कमी से बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत हुई है।च्चों की लाश को छिपाकर, दूसरे दरवाजों से अस्पताल से बाहर भेजा गया। बच्चों के भर्ती होने की जानकारी भी सामने नहीं आएगी क्योंकि एडमिशन कार्डों में हेराफेरी कर दी गई है। आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं हुआ था। कंपनी ने लिखकर दिया था कि पैसा न मिलने पर सिलेंडर की आपूर्ति नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि प्रचलित बीमारी (कमीशन) के चलते कंपनी को भुगतान में देरी की गई।सपा अध्यक्ष ने कहा कि सीएम ने 9 अगस्त को गोरखपुर में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की समीक्षा की थी। वह अस्पताल में मास्क लगाकर घूमे। इस बैठक में संबंधित अधिकारियों ने आक्सीजन की कमी की जानकारी उन्हें क्यों नहीं दी, यह भी धोखाधड़ी है।अखिलेश ने कहा कि हमने जेई के रोगियों के उपचार के लिए 200 बेड का वार्ड बनाया।  500 बेड की अलग विंग बनाई। वहां गोरखपुर ही नहीं, महाराजगंज, सिदार्थनगर, संत कबीर नगर, बस्ती, नेपाल और बिहार तक से मरीज आते हैं। अच्छा होता कि सरकार 500 बेड की विंग के लिए  उपकरण, स्टाफ और दवाइओं का इंतजाम करती ताकि रोगियों का उपचार हो पाता।

गोरखपुर में डाक्टरों, टेक्नीशियनों को एम्स की तरह सुविधाएं देनी चाहिए थीं। हमने केजीएमयू, लोहिया और सैफई में इस तरह की सुविधाएं दी थीं। उन्होंने कहा कि जनता ने सरकार को कामकाज के लिए भेजा है, लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नही है।

पीड़ित परिवारों को मिले 20-20 लाख मदद
अखिलेश यादव ने गोरखपुर की घटना पर राजनीति करने के सत्ता पक्ष के आरोप को दुखद बताया। कहा, हमने क्या धरना, प्रदर्शन किया। हमने डेलीगेशन भेजा है। हम पीड़ित परिवारों से बाद में मिलेंगे। उन्होंने कहा कि हमारी हर घटना में पीड़ितों की मदद करती थी। गरीबों की उम्मीद सरकार से रहती है। सरकार को आक्सीजन की कमी से मरने वालों को 20-20 रुपये की मदद करनी चाहिए। जिन शिक्षा मित्रों की मौत हुई है, उनके परिवारों को 50-50 लाख की मदद की जाए।

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SC ने पब्लिक सर्वेंट की तत्काल अरेस्टिंग पर लगाई रोक, कहा-इस एक्ट का हो रहा है दुरुपयोग

टीम ब्रेक न्यूज ब्यूरो  नई दिल्ली. एससी-एसटी एक्ट के तहत मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने नई गाइडलाइंस जारी की हैं. एक याचिका पर सुनवाई के दौ...