ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
सियासी गुणा गणित के लिए जाने जाने वाले चौधरी अजीत सिंह आजकल बेचैन हैं. 2014 की मोदी लहर ने उन्हें वे दिन दिखा दिए जिसके लिए वे कभी तैयार नहीं थे. कई सालों बाद वे पहली बार लोकसभा नही पंहुच पाए.
इस बेचैनी से निजात पाने के लिए अब अजीत सिंह ने नीतीश कुमार का दामन थमा है. शरद यादव से हुयी मुलाकात के बाद अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल और जनता दल यूनाईटेड यूपी में गठबंधन कर चुके हैं. लोकदल के उम्मीद्वार के पक्ष में शरद यादव की सभा भी हो गयी. कोशिश है की ये गठबंधन विधान सभा चुनावों में भी कायम रहे. मगर अजीत सिंह के इतिहास को देखते हुए सियासी दल उन पर भरोसा करने से कतराते हैं. इस लिए अंदरखाने इस बात की कोशिशे चल रही हैं की लोकदल का विलय जदयू में हो जाए.
सियासत में मुनाफे के कारोबारी अजीत सिंह को भी यह सौदा मुफीद लग रहा है और जदयू के लिहाज से भी यह फायदे का सौदा होगा. बिहार से राज्य सभा की 5 सींटे खाली होने वाली हैं और उनमे से दो जदयू के खाते में जा सकती हैं . अजीत की निगाह वहीँ टिकी है. वे चाहते हैं की पार्टी के विलय के साथ ही उन्हें राज्यसभा में जगह दी जाए. लोकसभा चुनावो में अभी काफी वक्त है और अजीत सिंह इतने दिनों तक बाहर बैठने के आदि भी नहीं हैं . इसके साथ ही वे विलय के बाद अपने बेटे जयंत चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाना चाहते हैं.
वहीँ जनता दल यूनाईटेड ने यूपी में ताल तो ठोंक दिया है मगर उसके पास न तो यूपी में संगठन है और न ही कोई कद्दावर जमीनी नेता. ऐसे में राष्ट्रीय लोकदल में विलय के बाद उसके पास संगठन को मजबूत बनाने का आधार खुद ब खुद ही मिल जायेगा. पश्चिम में लोकदल का संगठन मजबूत है और पूर्वांचल में पुराने समाजवादी नेताओं की कमी नहीं है.उन्हें पार्टी आसानी से जोड़ सकती है. खुद वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन बुंदेलखंड से आते हैं तो यहाँ भी कुछ फायदा हो सकता है. इसके साथ ही साथ जो सबसे बड़ी राहत की बात जदयू के लिए होगी की विलय के बाद अजीत सिंह के चुनाव पूर्व अचानक अलग होने का खतरा नहीं रहेगा. और इस विलय के बाद गठबंधन की राजनीती में दुसरे दलों से सीटों के बटवारे में भी आसानी हो जाएगी.
अजीत सिंह कभी यूपी के सीएम पद के प्रबल दावेदार हुआ करते थे. मगर मुलायम सिंह के दावं ने उन्हें ऐसा चित्त किया की चौधरी चरण सिंह की विरासत का दावा करने वाले छोटे चौधरी सूबे के पश्चिम में ही सिमट के रह गए. हालाकि उन्होंने केंद्र की राजनीति में खुद को मजबूत रखा और महज कुछ ही सांसदों के बूते वे एनडीए से ले कर यूपीए सरकार में मंत्री बने रहे.
संकेतों को समझे तो लगता है कि विलय के लिए अजीत सिंह ने भी अब अपना मन बना लिया है . उनके लिए यूपी के चुनाव अस्तित्व का प्रश्न बने हुए हैं . अगर पार्टी इन चुनावो में कुछ सीटे नहीं जीत पाएगी तो राष्ट्रीय लोकदल का यूपी में अस्तित्व ही ख़त्म हो जायेगा.
इसलिए अब वे उपचुनावों की सभाओ में सपा और भाजपा पर हमलावर दिखाई दिए. अजीत ने मुज्जफ्फर नगर के सभा में कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा सपा के साथ मिलकर यूपी में दंगे करा सकती है। साथ ही मुजफ्फरनगर दंगों में भी भाजपा की स्थानीय प्रशासन द्वारा मदद करने का आरोप भी लगा दिया. अजीत ने सपा को भी निशाने पर लिया और कहा कि सपा ने सरकार ने भी इस पर चुप्पी साधते हुए भाजपा का साथ दिया।
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