टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
अमेठी कांग्रेस के गढ़ में शुमार जिले की दो नगर पालिका परिषद और दो नगर पंचायतों में कांग्रेस की लाज भी नहीं बची। पहले लोकसभा में जीत का अंतर कम हुआ, फिर विधानसभा में करारी शिकस्त के बाद निकाय चुनाव में हुई दुर्गति से संगठन से लेकर गांधी-नेहरू फैमिली की छवि तक सवालों के घेरे में है।
निकाय चुनाव में कांग्रेस ने अमेठी और मुसाफिरखाना नगर पंचायत से अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा था। पहली बार नगर पालिका परिषद बनी गौरीगंज में गीता सरोज उसकी प्रत्याशी थीं। गीता सरोज पूर्व में सुल्तानपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।
प्रतिष्ठापरक चुनाव में गीता सरोज चार नंबर पर पहुंच गईं। जायस नगर पालिका परिषद से कांग्रेस से इसरत हुसैन मैदान में थे। उन्हें भी पराजय का मुंह देखना पड़ा। पहले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की जीत का अंतर कम हुआ। उसके बाद विधानसभा और अब निकाय चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है।
प्रतिष्ठापरक चुनाव में गीता सरोज चार नंबर पर पहुंच गईं। जायस नगर पालिका परिषद से कांग्रेस से इसरत हुसैन मैदान में थे। उन्हें भी पराजय का मुंह देखना पड़ा। पहले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की जीत का अंतर कम हुआ। उसके बाद विधानसभा और अब निकाय चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है।
लगातार अमेठी में मिल रही शिकस्त से संगठन से लेकर गांधी-नेहरू फैमिली की छवि तक सवालों के घेरे में है। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के जाने के बाद से ही अमेठी के स्थानीय चुनावों में कांग्रेस कभी भी बेहतर परफार्मेंस नहीं दे सकी है।
इसकी वजह भी साफ है कि गांधी-नेहरू फैमिली की उम्मीदवारी को यहां के लोग अपनी पहचान से जोड़ते हैं जबकि विधानसभा और उसके नीचे के चुनावों में उनकी स्थानीय जरूरतें मुद्दा होती हैं। राहुल गांधी की राष्ट्रीय छवि होने के कारण वे छोटे चुनावों में अमेठी को वक्त भी कम दे पाते हैं। कभी-कभार विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा प्रचार के लिए आते भी हैं तो ऐन मौके पर।
इसकी वजह भी साफ है कि गांधी-नेहरू फैमिली की उम्मीदवारी को यहां के लोग अपनी पहचान से जोड़ते हैं जबकि विधानसभा और उसके नीचे के चुनावों में उनकी स्थानीय जरूरतें मुद्दा होती हैं। राहुल गांधी की राष्ट्रीय छवि होने के कारण वे छोटे चुनावों में अमेठी को वक्त भी कम दे पाते हैं। कभी-कभार विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा प्रचार के लिए आते भी हैं तो ऐन मौके पर।
अमेठी में राहुल गांधी के कम वक्त दे पाने का एक नतीजा यह भी हुआ है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता या किनारे कर दिए गए हैं या फिर निष्क्रिय होकर घर बैठ गए हैं। जाहिर तौर पर स्थानीय चुनावों में इन बातों का असर पड़ना स्वाभाविक है।


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