Tuesday, November 28, 2017

नजरंदाज किए जाने से खफा हैं वरूण, मिला सकते हैं राहुल गांधी से हाथ

बीजेपी में नजरंदाज किए जाने से खफा हैं वरूण, मिला सकते हैं राहुल गांधी से हाथ!
टीम ब्रेक न्यूज 
ब्यूरो नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम फेस के मजबूत दावेदार और बीजेपी सांसद वरूण गांधी पार्टी की ओर से नजरंदाज किए जाने से खफा हैं. बीते दिनों कई मुद्दों पर अपनी ही पार्टी को वे कठघरे में खड़ा कर चुके हैं. यूपी विधानसभा के बाद निकाय चुनाव में भी पार्टी की ओर से अलग-थलग किए जाने से अब उनके अपने भाई राहुल गांधी से हाथ मिलाने की अटकलें लगने लगी हैं. देश की सियासत में संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी के बाद उनके बेटे वरूण गांधी कांग्रेस के खिलाफ ट्रंप कार्ड की तरह से इस्तेमाल किए जाते रहे. कांग्रेस विरोधी राजनीति में मेनका गांधी खासी सक्रिय भी रहीं. इसकी वजह गांधी परिवार में पड़ी दरार रही. कभी संजय गांधी विचार मंच खड़ा कर कांग्रेस को चुनौती देने वाली मेनका गांधी देश के बदले सियासी हालात में तीसरे मोर्चे का भी हिस्सा रहीं. लेकिन, अयोध्या मामले के बाद बीजेपी देश में कांग्रेस का विकल्प के तौर पर आगे बढ़ने लगी तो वे बीजेपी की हो गईं.  अटल बिहारी बाजपेई के बाद वे नरेंद्र मोदी की भी मंत्रिमंडल सहयोगी बनीं. उनके ही नक्शे कदम पर चलते हुए वरूण गांधी भी भगवा ब्रिगेड के साथी बन गए. बीजेपी में मोदी युग शुरू होने के बाद से ही वरूण को नजरंदाज करने का सिलसिला भी शुरू हो गया. इसकी आहट उस समय सुनाई दी, जब लोकसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास से भरी बीजेपी ने यूपी की सियासी बिसात बिछाई. पार्टी में यूथ फेस के तौर पर देखे जाने वाले वरूण गांधी को ही मोदी ब्रिगेड ने दरकिनार कर दिया.प्रदेश में अपनी पार्टी के समर्थकों के बीच लोकप्रिय वरूण गांधी को ही नहीं उनके सपोर्टरों को भी हाशिए पर डालने का ताना-बाना बुना जाने लगा. विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा और प्रदेश की सत्ता पर काबिज अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मिलकर बीजेपी को चुनौती दी. इन दोनों युवाओं की बीजेपी को चुनौती देने का ऐलान किया तो बीजेपी के अंदर भी किसी युवा फेस को सीएम के तौर पर पेश करने का दबाव बढ़ने लगा. पार्टी में उभर रही इस आवाज को देखते हुए सभी की निगाहें वरूण गांधी पर टिक गईं. क्योंकि एक तो वे युवा थे तो दूसरी ओर उनका जनाधार पूरे प्रदेश में था. इस उम्मीद के बीच बीजेपी सांसद वरूण गांधी के समर्थकों में भी जोश भर गया. लेकिन, सीएम फेस न डिक्लेयर कर बीजेपी ने वरूण गांधी और उनके समर्थकों की नाराजगी से बचने का रास्ता ढूंढ निकाला. मगर, उसने इस नेता के समर्थकों में से कईयों के टिकट ही काट दिए. सियासी पंडितों की मानें तो पार्टी नेताओं के मन में कांग्रेस या यूं कहें कि गांधी परिवार को लेकर जो दुराव सालों से रहा, उसी का नतीजा रहा कि वरूण गांधी को साइड लाइन करने की तैयारी कर ली गई थी. राजनीति के घाघ इस ओर भी इशारा करते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मिशन में जुटे गुजरात और राजस्थान लॉबी के पार्टी नेताओं को गांधी परिवार के किसी शख्स के हाथ में कमान जाने नहीं देना चाहते थे. सियासी जानकार यह भी कहते हैं कि बीेेजेपी में यह पहले भी भावना रही है, लेकिन अटल बिहारी बाजपेई के रहते यह भावना खुलकर सामने नहीं आई. अब चूंकि बीजेपी नेतृत्व पूरी तरह बदल चुका है, लिहाजा अब गांधी परिवार के प्रति यह भावना सबके सामने है. बीजेपी की राजनीति को करीब से जानने वालों का यह भी कहना है कि आरएसएस की भी इसमें अहम भूमिका है. इससे पहले अटल बिहारी बाजपेई के सामने वह भी चुप थी. पर, अब गांधी परिवार के खिलाफ दबी भावनाएं अपने एजेंडे में तब्दील हो रही हैं. बीजेपी नेता वरूण गांधी भी पार्टी के अंदर अपने हैसियत को लेकर खासे अनमने से हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची तक में शामिल नहीं किया. जबकि प्रदेश बीजेपी में उन्हें सीएम कैंडिडेट के तौर पर देखा जा रहा था. यूपी के विधानसभा चुनाव ही क्यों, निकाय चुनाव में भी उनका नाम स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल नहीं किया गया. जबकि प्रदेश के कई मंत्री और नेता गुजरात तक जाकर पार्टी की सभाएं कर रहे हैं. वहीं वरूण गांधी को अपने ही प्रदेश में पार्टी की ओर से कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है. पार्टी में नजरंदाज किए जाने से वरूण गांधी भी खासे खफा हैं. नाराजगी इस कदर की सालों से जिस परिवार व पार्टी को वे कोसते रहें, उसे भी स्वीकार करने के मूड बनाने को मजबूर हैं. एक न्यूज वेबसाइट पर बकायदा उनके कांग्रेस से हाथ मिलाने की बात कही जा रही है. वहीं कांग्रेसी दिग्गज भी गांधी परिवार के एक होने की बात कह रहे हैं. कांग्रेसी राजनीति को करीब से जानने वाले प्रह्लाद मिश्र का कहना है कि गांधी परिवार में एकता की पहल प्रियंका गांधी के जरिए मुमकिन हो सकती है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अब कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे हैं और वे भी इसकी पहल कर सकते हैं. उनका कहना है कि यह मुमकिन है कि राहुल और वरूण के बीच बातचीत की मध्यस्थता का जिम्मा प्रियंका संभाल सकती हैं.

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