ब्रेक न्यूज ब्यूरो
लखनऊ. यूपी की सियासत में फिलहाल मुलायम सिंह यादव का गढ़ जसवंत नगर इस बात के लिए पहचाना जाता है कि वहां से लम्बे समय से उनके परिवार का वर्चस्व है , मगर यूपी की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है जिस पर एक ही परिवार का कब्ज़ा बीते 26 सालो से हैं हांलाकि राजनीति के अखाड़े में इस परिवार को ले कर कभी भी बहुत चर्चा नहीं होती.
ये सीट है पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की कैंट विधान सभा जहाँ बीते 26 सालो से भाजपा का कमल खिल रहा है मगर ख़ास बात ये हैं कि हर विधान सभा चुनाव में पार्टी ने एक ही परिवार को टिकट दिया है. यह परिवार भाजपा के दिवंगत नेता और पूर्व मंत्री हरिश्चंद्र श्रीवास्तव का है और इस बार उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव इस सीट से पार्टी के उम्मीदवार है.
राम मंदिर आन्दोलन के बाद जब भाजपा का उभार हुआ तबसे यह सीट श्रीवास्तव परिवार के पास ही रही है. हरिश्चंद्र श्रीवास्तव जनसंघ के ज़माने से ही सक्रिय राजनीति में रहे थे. मूलतः गोरखपुर के निवासी हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के वक्त 1977 का चुनाव बांसी सीट से लड़ा था और जीते थे. जनता पार्टी की सरकार यूपी में बनी और हरिश्चंद्र मंत्री भी बने. फिर वे गोरखपुर के धुरियापार सीट से लडे मगर हार गए. बाद में उन्होंने वाराणसी को अपनी कर्मभूमि बनाया.
1989 में जब भाजपा ने राम मंदिर आन्दोलन की शुरुआत की तब हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की पत्नी ज्योत्सना वाराणसी की कैंट सीट से मैदान में उतारी मगर तीसरे नंबर पर रही. 1991 के चुनावो में फिर लड़ी और 5 हजार वोटो के मार्जिन से जीती. इसके बाद से यह सीट श्रीवास्तव परिवार के पास ही रही.19९३ का चुनाव भी ज्योत्सना ने जीत लिया , 1996 और 2002 के चुनावो में हरिश्चंद्र श्रीवास्तव यहाँ से खुद उम्मीदवार बने और जीते और यूपी की भाजपा सरकार में फिर से मंत्री बने.
हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की बढाती उम्र और ख़राब सेहत के कारण ज्योत्सना ने एक बार फिर मोर्चा सम्हाला और 2007 और 2012 के चुनावो में वे इस सीट को फिर बचाने में कामयाब रही. ज्योत्सना की बढाती उम्र के कारण पार्टी ने इस बार उम्मीदवार बदलने का फैसला किया मगर यह सीट एक बार फिर उन्ही के परिवार के पास रही. भाजपा ने 2017 में उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है. सौरभ और राजनाथ सिंह के छोटे बेटे नीरज की दोस्ती काफी गहरी है और दोनों बिजनेस पार्टनर भी रहे हैं. अब सौरभ के ऊपर अपने परिवार की पारंपरिक सीट बचने की जिम्मेदारी है.
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