ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो लखनऊ. लम्बे इंतज़ार के बाद भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष घोषित करने के बाद अब मिशन 2017 के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे की तलाश शुरू कर दी है. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इसके लिए एक रणनीति भी बनायी है जिसके तहत यूपी में चार नेताओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को आगे बढ़ाना शामिल है. आरएसएस भी इस फार्मूले पर अपनी सहमती दे चुका है.
पार्टी संगठन के सूत्र बताते हैं कि मिशन 2017 में अपने लक्ष्य को पाने के लिए पार्टी ने प्रदेश को चार हिस्सों में बांटा है. हर हिस्से के लिए एक बड़े नेता को जिम्मेदारी दी जायेगी. हलाकि इन नामो में कई चर्चित चेहरे गायब है. कभी चर्चा का केंद्र रहे केंद्रीय मंत्री डा. राम शंकर कठेरिया, लखनऊ के मेयर डा. दिनेश शर्मा और खुद को सीएम पद का दावेदार बता कर समर्थको से लाबियिंग करवा रहे योगी आदित्यनाथ का नाम इसमें नहीं बताया जा रहा है. जबकि अमेठी में अपनी जमीन तलाश कर रही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का नाम इनमे शामिल है.
हालाकि पार्टी का कोई नेता आधिकारिक रूप से कुछ कहने को तैयार नहीं है मगर सूत्रों का कहना है कि भाजपा अपना चुनाव अभियान चार चेहरों के साथ शुरू करेगी. पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान खुद प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या के कंधो पर होगी. मध्य क्षेत्र में प्रचार की कमान स्मृति ईरानी सम्हालेंगी तो पश्चिम यूपी का जिम्मा केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा के जिम्मे होगा. हालिया दिनों में सियासत का केंद्र बन रहे बुंदेलखंड की जिम्मेवारी संगठन में सक्रीय स्वतंत्र देव सिंह को दी जाएगी.
इन सभी नेताओं को सहयोग करने के लिए एक टीम तैयार की जाएगी जिसमे युवा चेहरों को वरीयता मिलेगी. पार्टी के जिम्मेदारों का मानना है कि इन चार चेहरों में जातीय समीकरण के साथ साथ स्मृति ईरानी का चेहरा होने से पार्टी को मदद भी मिलेगी.
रणनीतिकारो का मानना है कि इस तरह से पूरे प्रदेश में सघन रूप से काम हो सकेगा और साथ ही अपने अपने इलाके में बेहतर परिमाण दिलाने की आपसी होड़ भी लगी रहेगी जिसका फायदा पार्टी को मिलेगा. और जिस क्षेत्र में पार्टी को ज्यादा कामयाबी मिलेगी उस नेता का दावा सबसे अधिक होगा.
लेकिन अभी भाजपा के सामने सूबे में संगठन को नयी शक्ल देने की भी चुनौती है. 35 जिलाध्यक्षो के चयन के साथ ही संगठन को भी नया स्वरुप देना बाकी है. ज्यादातर इलाकों के जातीय समीकरणों को देखते हुए ही संगठन में नियुक्तियां की जाएँगी.
अब देखने वाली बात यह होगी कि जिन इलाकाई नेताओं ने खुद को सीएम की रेस में रखने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया था वे इस नयी रणनीति को कितना समर्थन देते हैं . योगी अदिय्नाथ के समर्थको ने तो यहाँ तक घोषणा कर दी है कि योगी नहीं तो भाजपा को वोट नहीं. ऐसे में अंदरूनी असंतोष को दबाने लिए पार्टी क्या रणनीति बनती है यह देखना भी दिलचस्प होगा.

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