विगत् दिनों क़ानून व्यवस्था और विकास की दृष्टि अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा माने जाने वाले राज्य बिहार में जहां आधिकारिक रूप से शराब पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया गया, वहीं उसी से सटे राज्य उत्तर प्रदेश में सबको चौंकाते हुए अखिलेश सरकार ने शराब के दाम लगभग एक चौथाई कम करने का फरमान सुनाया।
यूपी को बिहार की अपेक्षा अधिक जागरूक और प्रगतिशील माना जाता है। लेकिन शराब के दाम कम करने का ये अनोखा फैसला तो कहीं न कहीं यही दिखाता है कि यूपी की सोच बिहार से भी पीछे होती जा रही है। शराब के दामों में हुई इस कमी पर प्रदेश के लखनऊ शराब संघ के महामंत्री द्वारा कहा गया है कि यह राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ है कि शराब के दाम कम हो रहे हों, अन्यथा सरकारी अधिसूचना तो शराब के दाम बढ़ने की ही आती है।
कहा जा रहा है कि इसकी वजह हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों से बड़े पैमाने पर हो रही अंग्रेजी शराब की तस्करी है। इसको रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने उत्पाद शुल्क में कमी की है, जिससे शराब के दामों में ये कमी आई है। यह पूरी तरह से एक अमान्य और अस्वीकार्य तर्क है। अगर हरियाणा से शराब की तश्करी बढ़ रही है, तो ये क़ानून व्यवस्था की नाकामी है, जिस पर अंकुश के लिए पुलिस को मुस्तैद करने जैसी व्यवस्थाएं की जानी चाहिए न कि शराब के दाम कम कम किए जाने चाहिए।
दरअसल वास्तविकता यह है भी नहीं, शराब के दामों में कमी के पीछे की असल बात यह है कि शराब के दाम कम होंगे और अब अगले वर्ष फिर यूपी की सपा सरकार को चुनाव में जाना हैं, तो जाते-जाते वो शराब के लतियों का भी तुष्टिकरण करने की कोशिश कर रही, पर तुष्टिकरण के अन्धोत्साह में यूपी सरकार यह भूल रही है कि शराब के दामों में हुई इस कमी से यूपी के कितने ऐसे लोग जो दाम अधिक होने की वजह से इच्छा होते हुए भी शराब से बचे हुए होंगे, अब उसकी गिरफ्त में चले जाएंगे।
यकीनन यहां यह नहीं कहा जा रहा कि कि शराब के दाम अधिक होने पर शराबी शराब पीना छोड़ देते हैं, लेकिन पैसे के अभाव की मजबूरी में ही सही उन्हें शराब में कमी जरूर करनी पड़ती है, इसलिए अक्सर शराब के दाम बढ़ाए जाते रहते हैं, पर दाम कम होने पर शराबी उसमे पूरी तरह से डूब ही जाएंगे।
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