Tuesday, March 13, 2018

अपना फायदा देख दल बदलने में माहिर हैं नरेश अग्रवाल


टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. फायदा देख पाला बदलना हो तो कोई नरेश अग्रवाल से सीखे. नरेश अग्रवाल के राजनीतिक करियर को देख आप समझ जाएंगे कि किस तरह से नरेश अग्रवाल पार्टियां बदलते हैं. अपने हितों के लिए अग्रवाल अभी तक प्रदेश की प्रमुख पार्टियों का दामना थाम चुके हैं.

अब पार्टी प्रमुखों को नरेश अग्रवाल के दल छोड़ जाने पर कोई आश्चर्य नहीं होता है. अग्रवाल की गिनती ऐसे नेताओं में होती है, जो सत्ता के बिना रह नहीं पाते हैं. वह हवाओं को भांप पार्टियों को बदलते रहते हैं. प्रदेश की राजनीति की नजाकत को भांप अग्रवाल अब भाजपा के हो गए हैं. कांग्रेस से सियासत शुरु करने के बाद उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई और सपा, बसपा से होते हुए अब बीजेपी का दामन थामा है. अग्रवाल ऐसे नेताओं में हैं दो पिछले दो दशक से बिना सत्ता के नहीं रहे हैं. नरेश अग्रवाल सपा से पहले मायावती की बहुजन समाज पार्टी के रहे और उससे भी पहले वो कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनते रहे. कुल मिलाकर नरेश अग्रवाल की राजनीतिक पारी काफी लंबी रही है. नरेश अग्रवाल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत कांग्रेस पार्टी से शुरू की, कांग्रेस की ही टिकट पर 1980 में पहली बार विधायक बने, इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. बसपा ने तो 2009 के लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया, लेकिन वे नहीं जीत पाए, इसके बाद मायावती ने इन्हें 2010 में राज्यसभा भेज दिया. बता दें कि 1997 में नरेश अग्रवाल ने कांग्रेस पार्टी को तोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया था. वो सूबे में कल्याण सिंह की सरकार को समर्थन देकर बीजेपी में कैबिनेट मंत्री बने. इसके बाद वो कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहे. इसके बाद 2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सरकार बनी तो उसमें भी कैबिनेट का हिस्सा रहे. 2007 में बीएसपी की सरकार बनने के बाद वे बसपा में शामिल हो गए, 2012 में सपा के आने के बाद सपा के हो लिए, वे सपा से सांसद रहे,लेकिन अखिलेश के टिकट काटे जाने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया.
नरेश अग्रवाल के राजनीति इतिहास पर एक नजर. हरदोई के रहने वाले नरेश अग्रवाल करीब चार दशक से राजनीति में सक्रिय हैं. सात बार अलग-अलग पार्टियों से विधायक रह चुके हैं.1980 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर हरदोई से विधायक चुने गए. इसके बाद 1989 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत गए. इसके बाद फिर से उन्होंने कांग्रेस में वापसी कर ली और 1991, 1993 और 1996 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और चुनाव जीत गए. 1997 में इसी कांग्रेस पार्टी से अलग होकर उन्होंने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया और 1997 से 2001 तक बीजेपी सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे. उन्होंने 2002 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की. वहीं मुलायम सिंह यादव की सरकार में वो 2003 से 2004 तक पर्यटन मंत्री रहे. 2007 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन सूबे में बहुजन समाज पार्टी की सरकार आई और मायावती मुख्यमंत्री बनीं. बसपा की सरकार आते ही नरेश अग्रवाल ने सपा छोड़ दी और मायावती का दामन थाम लिया. उन्होंने 2008 में बसपा ज्वाइन की. मायावती के साथ वो तीन साल तक रहे. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने मायावती का भी साथ छोड़ दिया और फिर से सपा में चले गए. दरअसल, वो अपने बेटे नितिन अग्रवाल के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन बसपा ने ऐसा नहीं किया, जिसके चलते वो सपा के साथ चले गए.फिलहाल, नरेश अग्रवाल को बीजेपी ने उन्हें शरण दी है. हालांकि, उनके बीजेपी में जाते ही विवाद भी शुरु हो गया है.

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