भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए रिटायर्ड जज वीरेन्द्र सिंह को उत्तरप्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त कर दिया। ऐसा देश में पहली बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में लेते हुए किसी प्रशासनिक पद पर नियुक्ति की है। यूपी सरकार द्वारा दिये गये पांच नामों में से कोर्ट ने जस्टिस वीरेंद्र सिंह का नाम लोकायुक्त के लिये तय किया।
मेरठ के रहने वाले रिटायर जज वीरेंद्र सिंह 1977 बैच के पीसीएस-जे रह चुके हैं। वे 2009-2011 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज रहे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करके अनुछेद 142 के तहत लोकायुक्त का चयन किया।
बुधवार सुबह उच्चतम न्यायालय ने आदेश के बावजूद उत्तरप्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं किए जाने को लेकर यूपी सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने अखिलेश सरकार से उन पांच फाइनल नामों की लिस्ट मांगी थी जिन्हें प्रदेश का लोकायुक्त बनाने के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था। उल्लेखनीय है कि सरकार ने मंगलवार को हुई मीटिंग में लोकायुक्त के लिए नौ नामों का चयन कर लिया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में रिटा. जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त के रूप में नियुक्त कर दिया और राज्य सरकार को बार-बार दिए गए आदेश नहीं मानने के लिए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि यूपी का सिस्टम नाकाम रहा और राज्य में संवैधानिक एजेंसियां नाकाम रहीं।
कोर्ट ने कहा था कि अगर आप लोकायुक्त की नियुक्ति में नाकाम रहते हैं तो हम आदेश में लिखेंगे कि सीएम, गवर्नर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अपनी ड्यूटी करने में असफल रहे।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के कड़े रूख के बाद यूपी में लोकायुक्त के अपॉइंटमेंट को लेकर हुई बैठक मंगलवार को बेनतीजा रही। इस बैठक में सीएम अखिलेश यादव, नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ मौजूद थे। मंगलवार को हुई बैठक में सन 2011 के बाद अवकाश ग्रहण करने वाले उच्च न्यायालय के करीब 50 न्यायाधीशों का नामों पर विचार किया गया, जिसमें से नौ नाम छांट लिए गए थे। परन्तु इनमें से किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी।
बता दें कि बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए यूपी सरकार से कहा था, 16 दिसंबर तक लोकायुक्त की नियुक्ति करे या परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। अगर लोकायुक्त नियुक्त नहीं होता, तो कोर्ट अपने आदेश में लिखेगा कि सीएम, गवर्नर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अपनी ड्यूटी नहीं कर सके। साथ ही कोर्ट ने ये टिप्पणी भी की थी कि ऐसा लगता है कि लोकायुक्त नियुक्त न हो पाने के पीछे तीनों का ही अपना एजेंडा है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा- “24 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने के अंदर यूपी में नए लोकायुक्त के अपॉइंटमेंट का ऑर्डर दिया था। यूपी सरकार ने अब तक ये ऑर्डर फॉलो क्यों नहीं किया? यूपी के चीफ सेक्रेटरी कोर्ट में हाजिर होकर ये बताएं कि आखिर लोकायुक्त का अपॉइंटमेंट क्यों नहीं हुआ?
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