टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
किसानों को उसके नगदी फसल की गाढ़ी कमाई न मिलने से जहां उसके तमाम काम ठप पड़ गये हैं वहीं तमाम किसानों का पैसा फंसा देख दूसरे किसानों ने बिचौलियों को गेहूं बेचना शुरू कर दिया है।
किसानों को मूल्य समर्थन योजना के लाभ मिलने के रास्ते में पीसीएफ की बार बार कंगाली रोड़ा बन गई है। इस समय किसानों ने अपनी खून पसीने की मेहनत से तैयार की गई उपज का भी समय से पैसा नही पा रहे हैं।
सबसे अधिक क्रय केंद्र वाली पीसीएफ के ही भुगतान में लेट लतीफी करने से पैसे की कमी का खामियाजा अधिक किसानों को उठाना पड़ रहा है। अब नोडल विभाग ने भी पीसीएफ पर दबाव बनाना शुरू किया है ताकि मूल्य समर्थन योजना का लाभ सभी किसानों को मिल सके।
तमाम किसान परेशान हैं वे कहीं भी अपना गेहूं बेचने को तैयार हैं। वैसे तो सभी छह क्रय एजेंसयों पर कुल बकाएदारी तो 23.05 करोड़ है जिसमें से पीसीएफ पर अकेले 22.41 करोड़ की आउट स्टैंडिंग है। इतना ही नहीं यूपी एग्रो पर भी किसानों का करीब सवा नौ करोड़ बकाया है।
बिचौलिये को बेचने को मजबूर हुए किसान
गोंडा। क्रय एजेंसियों की ओर से किसानों से खरीदे गये गेहूं का समय से भुगतान न करते देख दूसरे किसानों ने मजबूरन न नौ नगद न तेरह उधार की तर्ज पर बिचौलियों को बेचना शुरू कर दिया है।
खास कर पीसीएफ की ओर से खरीदे गये गेहूं का भुगतान धनाभाव के कारण लटक गया है। इससे किसान अब पीसीएफ के क्रय केंद्रों पर जाने से संकोच करने लगे हैं। दूसरी ओर से सरकारी क्रय केन्द्रों पर किसानों के नकदी फसल का भुगतान लटकने पर बिचौलियों के हाबी होने की बड़ी संभावना रहती है।
इस बात की आशंका खुद आयुक्त ने पीसीएफ के एमडी को भेजे पत्र में जतायी है। इस बारे में खाद्य एंव रसद विभाग के संभागीय खाद्य नियंत्रक राजेश कुमार ने बताया कि सरकारी क्रय एजेंसियों में किसानों से खरीदे गये गेहूं के भुगतान की स्थिति सबसे अधिक खराब पीसीएफ की है। अन्य एजेंसियां समय से भुगतान कर रही हैं। पीसीएफ को उसके मुख्यालय से समय से पैसा नही मिल पा रहा है।
क्रय एजेंसियों को पैसे उपलब्ध कराने कड़े निर्देश दिये गये हैं
पीसीएफ के पास अक्सर गेहूं खरीद में पैसे की कमी पड़ जा रही है। इसके लिए पीसीएफ के एमडी को पत्र लिखने के साथ इनके जिला व मंडलीय अधिकारियों को कड़े निर्देश दिये हैं। पैसे जैसे जैसे मिल रहे है किसानों को भुगतान कर रहे हैं। भुगतान में अधिक देर करने पर कार्रवाई की जाएगी।
-सुधेश कुमार ओझा, मंडलायुक्त


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