टीम ब्रेक न्यूज ब्यूरो
उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में रह चुकी बहुजन समाज पार्टी पहली बार अपने चुनाव चिन्ह हाथी पर नगर निकाय चुनाव में किस्मत अजमा रही है। बीएसपी सुप्रीमों मायावती नगर निकाय चुनाव को बेहद गम्भीरता से ले रही हैं। अपने खोये जनाधार को हासिल करने की जद्दोजहद कर रही बीएसपी के लिये इस चुनाव को गंभीरता से लेना वक्त का तकाजा माना जा रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2012 में यूपी की सत्ता से बेदखल होने के बाद बीएसपी लगातार पराभव की ओर बढ रही है। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी में उसका खाता भी नहीं खुला। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में भी उसकी करारी हार हो चुकी है। विधानसभा की 403 सीटों में उसे महज 19 सीटें ही हासिल हुई थीं।
इन हालातों में प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव बीएसपी के लिये अपने खोये जनाधार को दोबारा हासिल करने का मौका होने के साथ-साथ चुनौती भी हैं। इस चुनाव में मिली जीत जहां उसे सूबे में उम्मीद की किरण मुहैया करायेगी, वहीं एक और नाकामी बीएसपी समर्थकों के मनोबल को तोड भी सकती है।
बीएसपी का जनाधार यूपी के दलित तबके में है। शहरों में उसका खास जनाधार नहीं है। इसके बावजूद खुद पार्टी मुखिया मायावती नगरीय निकाय चुनाव को बेहद गम्भीरता से ले रही हैं। वह मण्डलीय पदाधिकारियों के साथ लगातार बैठकें कर रही हैं। प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ज्यादातर टिकट मायावती ही तय करेंगी। पहली सूची जल्द ही जारी हो सकती है।
बीएसपी के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा, राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ, पूर्व मंत्री नकुल दुबे, प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर, पूर्व मंत्री अनन्त मिश्रा तथा शमसुद्दीन राइन को पार्टी प्रत्याशियों के लिये प्रचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बीएसपी सुप्रीमों मायावती प्रचार मैदान में उतरेंगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चैधरी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी। विधानसभा चुनाव में बीएसपी को इसका नुकसान उठाना पड़ा था। चुनाव के बाद बीएसपी का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से निकाल दिया गया था। इस हालातों में पार्टी की ताकत का अंदाजा निकाय चुनाव के नतीजों के बाद ही लगाया जा सकेगा।
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