टीम ब्रेक न्यूज़
लखनऊ कम लोगों को ही पता होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधानी में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन को सभासदी का चुनाव जिताने के लिए चौक में घर-घर वोट मांगे थे। यह काम उन्होंने लखनऊ के तीसरे महापौर और मशहूर डॉक्टर पीडी कपूर (पुरुषोत्तम दास कपूर) के आग्रह पर किया था। डॉ. कपूर, लालजी टंडन को लखनऊ के चौक वार्ड से सभासदी का चुनाव लड़ा रहे थे।
राजधानी के प्रसिद्ध नेत्र सर्जन और डॉ. पीडी कपूर के पुत्र राम कपूर बताते हैं कि भले ही आज महापौर के लिए उम्मीदवार बनने के लिए दावेदारों की भीड़ हो। आवेदन लिए जा रहे हों। पर, 60-70 के दशक तक इस पद के लिए बड़े नेताओं को लोगों की तलाश करनी पड़ती थी।लोग मुश्किल से तैयार होते थे। क्योंकि नेता जिसे इस पद की गरिमा के लायक मानते थे वह कोई बड़ा डॉक्टर, उद्योगपति, वकील, शिक्षाविद् या समाजसेवी हुआ करता था, जिसे इस पद पर बैठने में अपना मूल काम में बाधा पड़ती दिखती थी।
यह वह दौर था जब ड्राइवर मेयर की पत्नी और बच्चों को गाड़ी से ले जाने से इन्कार कर सकता था। यकीनन आज की पीढ़ी जो मौजूदा राजनीति के नेताओं को देखती है, उसे इस पर यकीन नहीं होगा। पर, हुआ ऐसा ही करता था।डॉ. राम कपूर बताते हैं कि अटल जी पिताजी के काफी करीबी मित्र हुआ करते थे। अटल जी की पहचान एक अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में हो चुकी थी। प्रदेश में निकाय के चुनाव चल रहे थे। पिताजी ने अपनी जगह चौक वार्ड से लालजी टंडन को जनसंघ से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।पार्टी में सहमति बनाई और लालजी टंडन का नामांकन कराया। समीकरण कुछ जटिल लग रहे थे। पिताजी ने अटल जी को लखनऊ बुलाया और कहा, ‘यह नौजवान लालजी हैं। इन्हीं को मैं चुनाव लड़ा रहा हूं। इनके लिए आपको मेरे साथ चौक में चलकर वोट मांगने हैं।’अटल जी स्वभाव के अनुसार, ठहाका लगाकर हंसे। बोले, ‘डॉक्टर साहब! आपका भी जवाब नहीं। अब मुझे चौक की गलियां घुमाओगे।’ बहरहाल अटल जी पिताजी के साथ चौक वार्ड में घर-घर गए और लालजी टंडन को वोट देने की अपील की। लोगों से कहा कि आप, लालजी टंडन को नहीं मुझे और डॉक्टर साहब को वोट देंगे। लालजी टंडन चुनाव जीते।उस समय मेयर को सिर्फ एक गाड़ी और एक ड्राइवर मिला करता था। एक दिन माताजी सावित्री देवी कपूर को अमीनाबाद स्थित रिश्तेदार के घर जाना था। मां के कहने पर मैं बाहर आया तो देखा कि ड्राइवर और कार खड़ी है। मैने मां को बताया। वे भी बाहर आ गईं और ड्राइवर से चलने का कहा। ड्राइवर ने कहा कि मेयर साहब कहां हैं? मां ने उत्तर दिया कि वह नहीं जाएंगे। सिर्फ हम जाएंगे।ड्राइवर बोला, ‘हम आप लोगों को नहीं ले जाएंगे। यह गाड़ी मेयर के लिए है। मैं किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि मेयर का ड्राइवर हूं।’ बहुत खराब लगा लेकिन मैं छोटा था। मां की तरफ देखा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ गई। फिर हम लोग अपने साधन से अमीनाबाद गए।शाम को माता जी और पिताजी का आमना-सामना हुआ तो यह प्रसंग छिड़ गया। मां नाराज, उनकी पिताजी से कहा-सुनी होने लगी। मैंने आवाज सुनी तो अंदर गया। देखा पिताजी कह रहे थे कि ड्राइवर ने बिल्कुल ठीक किया।गाड़ी मेयर को जनहित की जिम्मेदारी निभाने में मदद के लिए दी गई है। परिवार को घुमाने के लिए नहीं। जनता के पैसे की गाड़ी है और उसमें तेल भी जनता के पैसे से ही भरा जाता है। जनता के भरोसे को धोखा नहीं दिया जा सकता।
यह वह दौर था जब ड्राइवर मेयर की पत्नी और बच्चों को गाड़ी से ले जाने से इन्कार कर सकता था। यकीनन आज की पीढ़ी जो मौजूदा राजनीति के नेताओं को देखती है, उसे इस पर यकीन नहीं होगा। पर, हुआ ऐसा ही करता था।डॉ. राम कपूर बताते हैं कि अटल जी पिताजी के काफी करीबी मित्र हुआ करते थे। अटल जी की पहचान एक अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में हो चुकी थी। प्रदेश में निकाय के चुनाव चल रहे थे। पिताजी ने अपनी जगह चौक वार्ड से लालजी टंडन को जनसंघ से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।पार्टी में सहमति बनाई और लालजी टंडन का नामांकन कराया। समीकरण कुछ जटिल लग रहे थे। पिताजी ने अटल जी को लखनऊ बुलाया और कहा, ‘यह नौजवान लालजी हैं। इन्हीं को मैं चुनाव लड़ा रहा हूं। इनके लिए आपको मेरे साथ चौक में चलकर वोट मांगने हैं।’अटल जी स्वभाव के अनुसार, ठहाका लगाकर हंसे। बोले, ‘डॉक्टर साहब! आपका भी जवाब नहीं। अब मुझे चौक की गलियां घुमाओगे।’ बहरहाल अटल जी पिताजी के साथ चौक वार्ड में घर-घर गए और लालजी टंडन को वोट देने की अपील की। लोगों से कहा कि आप, लालजी टंडन को नहीं मुझे और डॉक्टर साहब को वोट देंगे। लालजी टंडन चुनाव जीते।उस समय मेयर को सिर्फ एक गाड़ी और एक ड्राइवर मिला करता था। एक दिन माताजी सावित्री देवी कपूर को अमीनाबाद स्थित रिश्तेदार के घर जाना था। मां के कहने पर मैं बाहर आया तो देखा कि ड्राइवर और कार खड़ी है। मैने मां को बताया। वे भी बाहर आ गईं और ड्राइवर से चलने का कहा। ड्राइवर ने कहा कि मेयर साहब कहां हैं? मां ने उत्तर दिया कि वह नहीं जाएंगे। सिर्फ हम जाएंगे।ड्राइवर बोला, ‘हम आप लोगों को नहीं ले जाएंगे। यह गाड़ी मेयर के लिए है। मैं किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि मेयर का ड्राइवर हूं।’ बहुत खराब लगा लेकिन मैं छोटा था। मां की तरफ देखा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ गई। फिर हम लोग अपने साधन से अमीनाबाद गए।शाम को माता जी और पिताजी का आमना-सामना हुआ तो यह प्रसंग छिड़ गया। मां नाराज, उनकी पिताजी से कहा-सुनी होने लगी। मैंने आवाज सुनी तो अंदर गया। देखा पिताजी कह रहे थे कि ड्राइवर ने बिल्कुल ठीक किया।गाड़ी मेयर को जनहित की जिम्मेदारी निभाने में मदद के लिए दी गई है। परिवार को घुमाने के लिए नहीं। जनता के पैसे की गाड़ी है और उसमें तेल भी जनता के पैसे से ही भरा जाता है। जनता के भरोसे को धोखा नहीं दिया जा सकता।
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