Wednesday, March 7, 2018

किरणमय नहीं सपा की ओर से राज्यसभा जाएंगी जया बच्चन


टीम ब्रेक न्यूज ब्यूरो 
लखनऊ. करीब सवा साल पहले कुनबाई कलह के बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष की ताजपोशी कराने वाले किरणमय नंदा पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा नहीं पहुंच सकेंगे. सपा ने उन्हें ही नहीं पार्टी में चाणक्य माने जाने वाले प्रो. रामगोपाल यादव के खास नरेश अग्रवाल को दरकिनार कर जया बच्चन को फिर से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है. बुधवार को पार्टी की ओर से एकमात्र राज्यसभा सदस्य उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम का ऐलान कर दिया है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव के साथ ही राज्यसभा सदस्यों के चुनाव को लेकर राजनीतिक जोड़तोड़ तेज है. बीएसपी अपने राज्यसभा सदस्य उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर के लिए अपनी दो दशक से अधिक समय पुरानी सियासी दुश्मनी को भुला सपा से हाथ मिला सभी को चौंका चुकी है. वहीं बीजेपी भी अपनी विधायकों के संख्याबल को देखते हुए आठ की बजाए नौ उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है. दरअसल, एक राज्यसभा सदस्य के निर्वाचित होने के लिए जरूरी 38 विधायकों के वोट को देखते हुए बीजेपी के पास आठ सदस्य की ​जीत पहले ही सुनिश्चित है. इसके बाद भी उसके पास 28 विधायक अधिक हैं. इसे देखते हुए वह एक और सदस्य को मैदान में उतारकर विपक्षी विधायकों में सेंध लगाने की तैयारी में है. दूसरी ओर बीएसपी के यूपी विधानसभा में 19 विधायक हैं और उसे अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए अन्य दलों के 19 विधायकों की जरूरत है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव में सपा के साथ वोटों का तालमेल कर अपने राज्यसभा सदस्य की जीत का आंकड़ा हासिल करने की जुगत लगा चुकी हैं. मौजूदा विधानसभा में सपा के 47 विधायक हैं. उसका एक सदस्य चुनकर राज्यसभा पहुंचना तय है. इसके बाद उसके पाले में नौ विधायक अधिक हैं. इन्हीं नौ विधायकों को ध्यान में रखते हुए बीएसपी सुप्रीमो ने सपा से अपनी 23 साल पुरानी सियासी दुश्मनी को पीछे छोड़ सूबे की सियासत में नए समीकरण बनने की ओर इशारा करने से भी परहेज नहीं किया. नौ विधायक सपा के उसके पाले में आने के साथ ही बीएसपी ने कांग्रेस को भी इशारे—इशारे में मध्य प्रदेश में समर्थन देने की बात कह उससे भी अपने कैंडिडेट को सपोर्ट करने का पासा फेंक दिया है. बहरहाल, यूपी में 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव 23 मार्च को होना है. जिन सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने की वजह से ये चुनाव हो रहे हैं उनमें सपा के राज्यसभा सदस्य किरणमय नंदा, जया बच्चन और नरेश अग्रवाल का नाम शामिल है. सपा के सामने महज एक सदस्य पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारने की मजबूरी में जया बच्चन के नाम को तरजीह दी है. बुधवार को सपा की ओर से राज्यसभा सदस्य उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम का ऐलान किया गया. सूबाई सियासत में मुलायम सिंह के खास किरणमय नंदा और प्रो. रामगोपाल यादव के करीबी नरेश अग्रवाल की जगह जया बच्चन के नाम पर अखिलेश यादव की ओर से मुहर लगाए जाने को लेकर खासी चर्चा है. बता दें कि सपा की पारिवारिक कलह के दौर में अखिलेश की ताजपोशी की न सिर्फ राह आसान की बल्कि अपनी मौजूदगी में किरणमय नंदा की अहम भूमिका थी. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष पद जब अखिलेश से छीना गया था तो किरणमय नंदा ने ही उनका बचाव किया था. साथ ही शिवपाल से तकरार के दौरान भी उन्होंने मुलायम सिंह से अखिलेश के लिए पैरवी की थी. इतना ही नहीं जिस अधिवेशन में अखिलेश यादव की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई थी, उसकी अध्यक्षता किरणमय नंदा ने ही की थी. यदि वे ऐसा न करते तो पार्टी संविधान को देखते हुए उनकी ये तमाम कोशिश धराशायी हो जाती. क्योंकि पार्टी संविधान के मुताबिक किसी भी अधिवेशन को तभी संवैधानिक माना जाता जब उसमें तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह मौजूद होते. लेकिन, मुलायम सिंह इस अधिवेशन में अखिलेश के कदम को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए शामिल नहीं हुए थे. ऐसे में पार्टी संविधान में अधिवेशन की कार्रवाई को संवैधानिक मुहर लगाने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष की हैसियत से इसमें शामिल हुए थे. पार्टी संविधान में अध्यक्ष की गैरहाजिरी में उपाध्यक्ष को अध्यक्षता का अधिकार हासिल है. अखिलेश यादव न सिर्फ किरणमय नंदा बल्कि​ पारिवारिक कलह के समय में राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभाने वाले प्रो. रामगोपाल यादव के करीबी नरेश अग्रवाल को राज्यसभा फिर से भेजने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. बुरे दौर में अखिलेश यादव की नैया पार लगाने वाले इन दो दिग्गजों को दरकिनार किए जाने को लेकर सियासी गलियारों में तरह—तरह की अटकलें लग रही हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि जया बच्चन को फिर से राज्यसभा भेजने का फैसला समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की सोची—समझी रणनीति का हिस्सा है. दरअसल, इन दिनों जया बच्चन के पति यानि बॉलीवुड के शहंशाह अमि​ताभ बच्चन की राजनीति में दिलचस्पी पर उनकी निगाह टिकी हुई है. बीते दिनों उन्होंने ट्विटर पर कई नेताओं को फॉलो कर सभी को चौंका दिया था. माना जा रहा था कि साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन के राजनीति में आने के बाद अमिताभ बच्चन के मन में भी राजनीति में दोबारा दिलचस्पी बढ़ रही है. सियासी जानकारों का कहना है कि इसी इशारे में अपनी पार्टी की उम्मीद देख रहे अखिलेश यादव ने जया बच्चन के जरिए अमिताभ को अपने अंगने में लाने की बिसात बिछा दी है. इससे पहले अमिताभ बच्चन ने अपने मित्र राजीव गांधी के कहने पर कांग्रेस से राजनीतिक में कदम रख चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद में लोकसभा चुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज को पटखनी दे डाली थी. लेकिन, जल्द ही उनका सियासत से मन खट्टा हुआ तो फिर इससे किनारा कर लिया. बॉलीवुड के इस सुपरस्टार के दुर्दिन आए तो अमर सिंह ने अमिताभ के लिए समाजवादी पार्टी की ओर से गैरराजनीतिक मंच सजाया. पत्नी जया बच्चन के साथ सपाई नेताओं की मौजूदगी वाले मंच पर दिखने वाले अमिताभ बच्चन ने परदे के पीछे से इस राजनीतिक दल की मदद कर अमर सिंह का अहसान उतारा.

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