ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. एक के बाद एक बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ कर जाने के वाकयों से तिलमिलाई बसपा सुप्रीमो अब फिर से आक्रामक होने की तैयारी में है तो वहीँ सूत्रों का कहना है कि अगले सप्ताह बसपा के कई और विधायक पार्टी छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं.वैसे तो नेताओं के बसपा छोड़ने का सिलसिला लगातार चलता रहता है मगर यूपी के विधान सभा चुनावो के पहले बहुजन समाज पार्टी के बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस तरह मायावती को झटका दिया उससे बसपा की चुनावी संभावनाओं को झटका जरूर लगा है. स्वामी प्रसाद मौर्या और नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती के मजबूत आधार माने जाते रहे हैं.
लखनऊ. एक के बाद एक बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ कर जाने के वाकयों से तिलमिलाई बसपा सुप्रीमो अब फिर से आक्रामक होने की तैयारी में है तो वहीँ सूत्रों का कहना है कि अगले सप्ताह बसपा के कई और विधायक पार्टी छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं.वैसे तो नेताओं के बसपा छोड़ने का सिलसिला लगातार चलता रहता है मगर यूपी के विधान सभा चुनावो के पहले बहुजन समाज पार्टी के बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस तरह मायावती को झटका दिया उससे बसपा की चुनावी संभावनाओं को झटका जरूर लगा है. स्वामी प्रसाद मौर्या और नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती के मजबूत आधार माने जाते रहे हैं.
पार्टी छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं उसने एक संकेत तो साफ़ दिया है कि स्वामी प्रसाद के इस कदम को कहीं बाहर से पूरा समर्थन मिल रहा है. बसपा का मानना है कि स्वामी की इस बगावत को हवा देने में भाजपा के रणनीतिकार पूरी तरह से सक्रिय है. पार्टी छोड़ने के बाद जिस तरह से स्वामी प्रसाद मौर्या की बैठक का पेशेवर प्रबंधन नजर आया उसने भी इस बात को और बल दिया है.
बसपा से बाहर हुए नेता भी कमर कस चुके हैं. कभी बसपा के दिग्गजों में शुमार दलित नेता दीना नाथ भास्कर ने दावा किया है कि अगस्त तक लगभग 28 विधायक बसपा से इस्तीफा देकर एक नयी पार्टी का हिस्सा बनेंगे. भास्कर ने इस बात का दावा भी कर दिया कि ये सभी 28 विधायक बसपा से इस्तीफा देकर एक नयी बनने वाली पार्टी में शामिल होंगे.
भास्कर के दावों के हिसाब से 10 जुलाई के पहले ही कई पूर्व एवं वर्तमान विधायक बसपा का दामन छोड़ देंगे और सितम्बर में लखनउ के रमाबाई अम्बेडकर मैदान में होने वाली रैली में ये सब मौजूद रहेंगे.
बसपा से निकला हुआ धडा वाकई ऐसा करने में कामयाब हो जाता है तो फिर आंबेडकर और कांशीराम के विरासत की खुली जंग यूपी में शुरू हो जाएगी. इसके साथ ही यूपी के सियासी समीकरणों में भी बदलाव आना तय है. भाजपा ने अपने गठबंधन को आकर देना शुरू कर दिया है और जिस तरह अपना दल के कृष्णा पटेल और बिहार के सीएम नितीश कुमार के बीच बातचीत जारी है उससे यह साफ़ संकेत है कि यूपी के चुनावी समर से पहले नितीश कुमार कुछ छोटे दलों को जुटाने में कामयाब हो जायेंगे. संभावना यह भी है कि कांग्रेस भी इस गठबंधन का एक प्रमुख हिस्सा रहेगी. ऐसे में बसपा के ये बागी किससे हाथ मिलते हैं यह महत्वपूर्ण हो जायेगा.
अब मायावती ने भाजपा और सपा के कुछ नेताओं को पाने पाले में लाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. उनकी नजर इन दोनों पार्टियों के असंतुष्ट नेताओं पर टिकी है और साथ ही साथ मायावती ने अपनी पार्टी के नेताओं पर भी कड़ी निगहबानी का इंतजाम कर लिया है. दूसरे दलों के नेताओं को साथ लाने से बसपा उस माहौल को बदलने की कोशिश करेगी जिसकी वजह से विरोधी बसपा को डूबता जहाज बताने से नहीं चूक रहे हैं.
मगर इतना तो तय है कि अगर बागी नेताओं की रणनीति कामयाब रही तो उसका सबसे ज्यादा नुक्सान मायावती को ही होगा. एक तरफ भाजपा उसके दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में जुटी है तो वहीँ ये बागी नेता भी बसप के पारंपरिक वोटो में ही अपना हिस्सा बटाएँगे.
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