Friday, July 22, 2016

लखनऊ : दयाशंकर को मिली गालियों से किसका फायदा

ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
लखनऊ जिस वजह से बसपा सुप्रीमो मायावती त्राहि त्राहि कर रही हैं, वैसी ही स्थिति जब दयाशंकर के लिए पैदा हुई तो वो मन ही मन खुश हो रही होंगी. भाजपा के उपाध्यक्ष रहे दयाशंकर पर जवाबी हमला करते हुए जिस तरह बसपाइयों ने लखनऊ के बीच चौराहे पर उन्हें गालियां दीं, समाज दयाशंकर की करतूत की ही तरह भले ही इसे भी निन्दनीय बता रहा है लेकिन, मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं की इस करतूत को सही ठहराया है. तभी तो उन्होंने कहा कि वो कार्यकर्ताओं के लिए देवी स्वरूपा हैं और उनके अपमान पर ऐसी प्रतिक्रिया हुई है. जाहिर है मायावती ने न सिर्फ दयाशंकर को दी गयी गालियों को सही ठहराया है बल्कि अब तो ये आरोप लगने लगे हैं कि ये सब कुछ उन्हीं के निर्देशों पर हुआ है. लेकिन, महत्वपूर्ण बात ये है कि जहां मायावती एक तरफ तो अभद्र व्यवहार की निन्दा कर रही हैं लेकिन दूसरी तरफ वैसे ही व्यवहार का समर्थन क्यों कर रही हैं. असल में तल्ख भाषा बसपा की राजनीति का एक अहम हिस्सा है या यूं कहें कि सबसे महत्वपूर्ण. याद करिये वो दौर जब बसपा ने ही सवर्णों के लिए नारा दिया था “तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार “. इस नारे से ब्राह्मणों ठाकुरों और व्यापारी वर्ग पर तीखा प्रहार किया गया था.
मायावती
बसपा के राजनीति में उदित होने से पहले के दौर पर विचार करें तो ये स्पष्ट हो जाता है कि मायावती की भाषा में इतनी तल्खी क्यों हैं. हम सबको या तो एक दौर याद है या फिर पढ़ने सुनने को मिलता है कि समाज में दलितों की स्थिति क्या थी. वे समाज में अछूत तो थे ही, गालियां भी उनके लिए बेहद सामान्य सी घटना थी जो उनके जीवन में रची बसी थी. इसमें कोई दो राय नहीं कि समाज में ठाकुरों, ब्राह्मणों और व्यापारियों का दबदबा था. जाहिर तौर पर इन्हीं तीन जातियों से समाज का सबसे निचला तबका सबसे ज्यादा पीड़ित था. फिर वो दौर आया जब राजनीति ने करवट लेनी शुरु की. बहुजन समाज पार्टियों के लिए राजनीति में जगह भी समाज के इन्हीं तीन जातियों द्वारा शोषण के द्वारा पैदा हुआ. अब बसपा के नेताओं के लिए जरूरी ये था कि वे समाज में सबसे ज्यादा डरे हुए लोगों में साहस फूंक सके. इसके लिए जरूरी था कि जिससे वे डरते थे उन्हें डराया जाये. या डराया भी न जा सके तो कम से कम ये संदेश तो दिया ही जाये कि उनमें उन्हें डराने की क्षमता है. इसी मूल भावना के तहत ही मायावती हमेशा तल्ख नजर आती हैं. उनके शासनकाल में कुण्डा के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को तरह तरह से घेरने की उनकी रणनीति भी असल में इसी भावना के तहत मानी जाती है.

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