टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
गोरखपुर. यूपी के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई ठप्प हो जाने से हुई मासूमों की मौत ने पूरे देश को दहला दिया है. इस पूरी घटना में सरकार और प्रशासन की लापरवाही से लोगों में आक्रोश भी है और दुख भी. घटना के करीब 36 घंटों बाद भी सरकार के मंत्री अपनी नाकामी को छुपाने में लगे हुए हैं और यह मानने को तैयार नहीं है कि ये मौतें सिस्टम की लापरवाही का नतीजा है. मंत्री ये समझाने में लगे हुए है कि ये मौतें सामान्य है और इसके लिए आकड़े पेश कर रहे हैं. लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर यह भी मान लिया जाए कि ये मौतें हर रोज होती हैं तो फिर इसके लिए हुक्मराम कुछ करते क्यों नहीं. क्या एक आम इंसान की जिन्दगी इतनी सस्ती है जितना कि हमारे नेता समझते हैं. मासूमों की मौत पर दुख व्यक्त कर देना या फिर मुआवजा दे देना पर्याप्त है. हमारे घरों में जब कोई मासूम पैदा होता है तो माता-पिता उसकी लंबी उम्र के लिए तरह-तरह के आयोजन करते हैं. पूरे परिवार और पड़ोस में ख़ुशी का महौल होता है. इतना ही नहीं संतान की चाहत में लोग कितनी ही मन्नते करते हैं और उसके लिए क्या कुछ नहीं करते. लेकिन जब इन्हीं मासूमों की जान को सिस्टम लील जाता है तो सोचिये कि उसके माता-पिता के जीवन का क्या अर्थ रह जाता होगा?गोरखपुर मेडिकल कॉलेज से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित मंझरिया गांव के निवासी एक व्यक्ति की ऐसी ही कहानी है. इस शख्स ने भगवान से बड़ी प्रार्थना की तो उसे एक पुत्र मिला. जिसका नाम जितेन्द्र रखा, लेकिन इन्हें क्या मालूम था कि ये जितेन्द्र इस सिस्टम से नहीं जीत सकता. मासूम जितेन्द्र भी गोरखपुर में हुए इस भयानक हादसे का शिकार हो गया. लेकिन उसके माता-पिता को सबसे ज्यादा दुःख इस बात का है कि उन्होंने अपने बेटे को पिछले 15 दिनों से देखा नहीं था. ये लोग अपने बेटे को देखने के लिए तरसते रहे और डाक्टारो-कर्मचरियों से गिडगिडाते रहे. लेकिन अस्पताल प्रशासन उन्हें अपने बेटे को देखने के लिए तरसता रहा और अब जब ऑक्सीजन की सप्लाई के ठप्प हो जाने के बाद वो बेटे से मिले तो वो तड़प-तड़प कर अपना दम तोड़ चूका था. बेटे की लाश को देखकर माँ ने तो अपना होश खो दिया वहीँ पिता पत्थर बन के रह गए.
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