Sunday, January 1, 2017

सियासत के मजबूत पहलवान की पराजय से एक युग का अवसान

विवेक सिन्हा
ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो 
लखनऊ. करीब तीन साल पहले यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ व्यक्तिगत बातचीत में वो इस बात से बहुत परेशान लग रहे थे कि मुख्यमंत्री होने के बाद भी उनकी कई मामलों में नहीं चल पा रही. तब मैंने उनसे पूछा था, जोधा- अख़बर फिल्म देखि है ? उन्होंने कहा क्यों पूछ रहे हैं ? मैंने कहा था- इस फिल्म में एक सबक है, जबतक बैरम खान हज पर नहीं गया, जलालुद्दीन अकबर नहीं बन सका था.
साल 2017 की पहली सुबह इस युग के बैरम खान को हज पर भेजने की घोषणा भी लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क से हो गयी. अब सवाल ये है की क्या जललुद्दीन अख़बर बन पायेगा.
जिस बात की उम्मीद शनिवार को ही लगायी जा रही थी। वही, रविवार की सुबह हुआ। नए साल की पहली सुबह ने भारतीय राजनीति के सबसे बड़े और चतुर पहलवान मुलायम सिंह के सारे दांव बेकार गए और उनके ही अपनों ने उन्हें सियासत के अखाड़े में ,एेेतिहसिक पटखनी दे डाली।mulayam-cartoon_144438285
शनिवार की दोपहर बाद जब यह माना जा रहा था की सब कुछ ठीक हो गया है तब भी अखिलेश और रामगोपाल को इस बात की शंका थी की मुलायम सिंह खेमा कभी भी अपना चरखा दांव अाजमा सकता है। इसीलिए रविवार को बुलाये गए सम्मलेन को करने की सूचना लगातार मुख्यमंत्री खेमे से एलान होते रहे।
आशंका सच हुयी और रविवार की सुबह मुलायम सिंह ने इस सम्मलेन को ख़ारिज करने की चिट्ठी जारी कर दी. साथ ही शिवपाल यादव ने कई जिलाध्यक्षो को पार्टी से निकल दिया। मगर तब तक लखनऊ का जनेश्वर मिश्र पार्क में लगभग पूरी समाजवादी पार्टी खड़ी थी और मुलायम अपनी ही बनायीं गई समाजवादी पार्टी में अकेले पड़ गए।
मुलायम सिंह ने कभी यह सोचा नहीं होगा की चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह और चंद्रशेखर जैसे नेताओं के साथ जो उन्होंने किया था। वही कभी उनके साथ उनका ही बेटा करेगा. मगर इतिहास खुद को दोहराता है और साथ ही नया इतिहास भी लिखा जाता है. 1 जनवरी 2017 को भी भारतीय राजनीती के इतिहास में वही जगह मिल गयी है जिसे सियासी पंडित कभी नहीं भूल पायेंगे.
शनिवार को अखिलेश यादव ने विधानमंडल दल पर अपनी पकड़ दिखाई थी और रविवार को पूरी पार्टी पर उनकी पकड़ साबित हो गयी. कभी मुलायम की राजनीति में आधार धुरी बने रहने वाले शिवपाल सिंह यादव ही मुलायम के राजनीतिक अवसान का कारण भी बन गए. अब समाजवादी पार्टी में मुलायम उसी दशा में पंहुच गए हैं जिस हालत में भारतीय जनता पार्टी में लाल कृष्ण आडवानी.

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