Saturday, March 16, 2019
वर्चस्व की जंग ने कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन में दूरियां बढ़ाईं
टीम ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली ; चुनावी सफर में मजबूत हमसफर मिल जाए तो मंजिल आसान हो जाती है, पर सफर शुरू होने से पहले ही अगर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो जाए तो आगे की राह में कांटे आ सकते हैं। फिलवक्त ऐसा ही हाल गैरभाजपा दलों में बड़े खिलाड़ी बसपा-सपा-रालोद गठबंधन व कांग्रेस के बीच है।
वर्चस्व की जंग में खासकर सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़ती नजर आ रही हैं। कांग्रेस की पश्चिमी यूपी के उभरते हुए दलित नेता चंद्रशेखर से बढ़ती नजदीकी ने बसपा को और नाराज कर दिया है। यहीं नहीं, कुछ समय पहले तक कांग्रेस के प्रति नर्मी रखने वाली सपा भी नाराज है। कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में सपा की सिटिंग व परिवार की सीट बदायूं से प्रत्याशी उतार दिया है। बदायूं से मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेंद्र यादव सपा से प्रत्याशी हैं। पिछली बार मोदी लहर के बावजूद वह जीत गए थे। कांग्रेस से सपा की नाराजगी की यह भी अहम वजह मानी जा रही है। दरकते रिश्तों से नौबत यहां तक आ गई है कि सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अमेठी सीट, सोनिया गांधी की रायबरेली सीट से प्रत्याशी देने पर विचार कर रहा है।
सपा तो कई चुनावों से रायबरेली, अमेठी सीट छोड़ती रही है तो कांग्रेस ने भी डिंपल यादव के लिए कन्नौज सीट छोड़ी थी। इस पूरे हालात से भाजपा का खुश होना लाजिमी है। वैसे बसपा सुप्रीमो मायावती काफी पहले से ही कांग्रेस से दूरी बनाए हुए थीं और उनकी कांग्रेस के प्रति तमाम मुद्दों पर तल्खी छिपी नहीं थी, पर सपा चाहती थी कि कांग्रेस को भी इसमें शामिल कर भाजपा विरोधी गठजोड़ का दायरा बढ़ाकर और मजबूत किया जाए। ऐसा इसलिए भी जरूरी था क्योंकि विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाथ मिला कर गठजोड़ किया था। .
सपा के साथ फायदा कांग्रेस के साथ नुकसान
बसपा के संस्थापक कांशीराम ने पहला चुनावी गठजोड़ सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव से किया और राम लहर के बावजूद भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। दो क्षेत्रीय दलों के दलित, पिछड़ा व मुस्लिम वोट बैंक ने भाजपा व कांग्रेस दोनों को कमजोर करना शुरू किया। हालांकि, सपा और बसपा की राहें बाद में जुदा हो गईं, पर दोनों की ताकत बढ़ती गई और कांग्रेस तो लगातार कमजोर होती गई। वर्ष 1993 के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने नर्म रवैया दिखाते हुए सपा के साथ समझौता करने का निर्णय लिया और गठबंधन में रालोद को भी लिया। साथ ही सपा को समझाया कि वह कांग्रेस से दूर ही रहे। .
2017:सपा-कांग्रेस गठबंधन
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी सरकार दोबारा बनाने की गरज से बड़ा कदम उठाते हुए कांग्रेस से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। सपा ने कांग्रेस के लिए सौ से कुछ ज्यादा सीटें छोड़ीं, पर दोनों का मिला-जुला वोट बैंक भी कुछ खास नहीं कर पाया। सपा को 47 तो कांग्रेस को सात सीटें ही मिलीं। .
1996: बसपा-कांग्रेस गठबंधन
इस चुनाव में बसपा ने 296 सीटों पर और कांग्रेस ने 126 सीटों पर चुनाव लड़ा और बसपा 67 सीटें जीती तो कांग्रेस 33 सीटें जीत पाई। बसपा ने कहा कि कांग्रेस का वोट उसे ट्रांसफर नहीं हो पाया, जबकि उसका वोट पूरी ईमानदारी से कांग्रेस को चला गया। बहरहाल कुछ समय बाद भाजपा ने बसपा को सहयोग कर उसकी सरकार बनवा दी। इसके बाद बसपा ने कभी कांग्रेस से गठजोड़ नहीं किया।.
1993: सपा-बसपा गठबंधन
425 सीटों में सपा ने 260 व बसपा 164 सीटों पर मिल कर चुनाव लड़ा। गठबंधन से सपा को 109 तो बसपा को 67 सीटें मिलीं, जबकि अकेली लड़ी भाजपा को 177 सीटें मिलीं। सपा-बसपा ने मिलकर सरकार बनाई। इसमें कांग्रेस ने भी बाद में सहयोग दिया। .
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