Monday, February 13, 2017

यूपी चुनाव: दूसरे चरण में होगी समाजवादी दबदबे की परीक्षा


दूसरे चरण में होगी समाजवादी दबदबे की परीक्षा

लखनऊ. पहले चरण के चुनावो के ख़त्म होने के बाद सबके अपने अपने दावे हैं. 73 सीटो पर बीते 11 फ़रवरी को वोट पड़ने के बाद भाजपा  से ले कर बसपा और समाजवादी पार्टी कांग्रेस गठबंधन ने 50 सीटें जीतने का दावा किया गया. हालाकि इस चरण में बसपा का दबदबा माना जा रहा था और खबरे यह भी बताती हैं कि अजीत सिंह के पक्ष में एक जुट हुए जाट मतदाताओं के कारण राष्ट्रीय लोकदल ने कई सीटों पर भाजपा का गणित बिगाड़ा है. 

अब आने वाली 15 तारिख को दूसरे चरण के जिन इलाको में वोट पड़ने हैं वह समाजवादी दबदबे वाला इलाका माना जाता है. 11 जिलों की 67 सीटों पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की भी असल परीक्षा होगी. सपा का गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में कई दिग्गजों का भविष्य दावं  पर लगा है . समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान,कांग्रेस के इमरान मसूद, भाजपा के सुरेश खन्ना,कांग्रेस के जितिन प्रसाद, बसपा के नवेद मिया सरीखे दिग्गज भी इसी चरण में संघर्ष कर रहे हैं. 

दूसरे चरण के चुनावो में भी मुस्लिम मतदाताओं के रुख पर सबकी निगाहे लगी हुयी हैं. मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बिजनौर,बरेली,जैसे इलाकों में मुस्लिम मतों का रुझान बहुत कुछ तय कर देगा. भाजपा को भी इस बात का बखूबी पता है इसलिए इस इलाके में उसने योगी आदित्यनाथ जैसे फायर ब्रांड हिन्दू वादी नेता को उतरा है. भाजपा की कोशिश हिन्दू भावना के उभार के जरिये मतों का ध्रुवीकरण करना है. योगी भी कैराना को कश्मीर नहीं बनाने देंगे और लव जिहाद जैसी बाते ही कर रहे हैं. दूसरी तरफ रामपुर में आजम खान की प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगी है. इस बार उन्होंने अपने बेटे अब्दुला आजम को स्वार सीट से उतरा है , अब्दुल्ला का मुकाबला नवेद मियां से होगा जो इस बार बसपा के टिकट पर लड़ रहे हैं. नवेद मियां रामपुर के नवाब खानदान के वारिस हैं और आजम खान से उनके परिवार की सियासी दुश्मनी हमेशा सुर्ख़ियों में रही है. 

सहारनपुर का चुनाव भी इस बार ख़ास हो गया है. कांग्रेस समाजवादी गठबंधन के लिए यही एक ऐसा जिला है जहाँ की 7 सीटो में से 5 सीटें कांग्रेस के खाते में हैं. मुस्लिम दबदबे वाले इस जिले में कांग्रेस के नेता इमरान मसूद के भरोसे ही गठबंधन लड़ रहा है. खुद इमरान नकुड सीट से और उनके भाई नोमन मसूद गंगोह सीट से मैदान में हैं. सहारनपुर नगर से समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग और देवबंद से माविया अली मैदान में हैं. संजय गर्ग पूर्व मंत्री रहे हैं और माविया अली कांग्रेस छोड़ कर सपा में आये हैं. सहारनपुर में बसपा भी मजबूत है और माना जा रहा है कि इन सात सीटो पर सीधी लडाई गठबंधन और बसपा के बीच ही है. हांलाकि इसी इलाके में दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम के परिवार का भी दखल है. बुखारी ने इस बार बसपा को समर्थन दे दिया है. अब कितना असर उनकी इस अपील का होता है ये भी देखना है.    

लखीमपुर में बाला प्रसाद अवस्थी और हरविंदर सिंह जैसे सिटिंग विधायक बसपा छोड़ कर भाजपा में हैं. मुहम्मदी सीट पर पूर्व सांसद और विधायक रहे दावाद अहमद भी बसपा के टिकट पर  मैदान में हैं. गोला के दिग्गज भाजपा नेता अरविन्द गिरी और निघासन से रामकुमार वर्मा के चुनावो पर भी सबकी निगाहें हैं.शाहजहाँपुर में भाजपा के सुरेश खन्ना और कांग्रेस के जितिन प्रसाद पर निगाहे रहेंगी. सात बार से लगातार शाहजहांपुर की सदर सीट से जीत रहे सुरेश खन्ना को यहाँ अपराजेय माना जाता है. तिहर से जितिन प्रसाद का पुश्तैनी दबदबा है. उनके पिता जीतेन्द्र प्रसाद की इस इलाके में बड़ी प्रतिष्ठा रही है और जितिन भी यहाँ से सांसद हुए मगर बीते लोकसभा चुनावो में मोदी लहर उन्हें ले डूबी थी . इस बार कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा के लिए उतारा है. पीलीभीत मेनका परिवार के दबदबे वाला इलाका है और इस बार ख़ास तौर से वरुण गाँधी की भाजपा नेतृत्व द्वारा की गयी उपेक्षा भी गुल खिलाएगी. खुद मेनका गाँधी भी प्रचार में सक्रिय नहीं हैं. बदायू में समाजवादी पार्टी के सांसद और अखिलेश यादव के करीबी धर्मेन्द्र यादव की प्रतिष्ठा फंसेगी. इस इलाके में यादव मुस्लिम गठजोड़ समाजवादी पार्टी की ताकत रहा है सपा परिवार के आपसी झगड़े और बसपा द्वारा तीन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने का कितना असर होता है यह भी सपा की संभावनाओं को प्रभावित करेगा. 

अमरोहा , बिजनौर, बरेली, मुरादाबाद में राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी भी मैदान में हैं जो मुकाबले को चौतरफा बना रहे हैं. बरेली की नवाब गंज सीट से ओवैसी ने भी अपना प्रत्याशी उतारा हुआ है.  इस इलाके में मौलाना तौकीर रजा का भी दबदबा माना जाता है मगर इस बार उनका झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ है जिसका लाभ सपा गठबंधन को मिल सकता है. अमरोहा से भाजपा सांसद रहे पूर्व क्रिकेट खिलाडी चेतन चौहान को भाजपा ने इस बार नौगावं सादात से विधान सभा के लिए उतार दिया है. 

पहले चरण के बाद भी चुनावी हवा का रुख साफ़ नहीं है. ऐसे में दूसरे चरण की इन 65 सीटो पर होने वाली वोटिंग पर निगाह लगी हुयी है. ध्रुवीकरण की कोशिश अब तक कामयाब नहीं हुयी है और ऐसा लगता है कि इस बार वोटरों का मिजाज 2014 जैसा कतई नहीं है. ऐसे में भाजपा के लिए दूसरे चरण में मजबूत चुनौती है और सपा पर भी अपना गढ़ बचने का दबाव.              

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