ब्रेक न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली। भाजपा को असम में जीत मिली................
लेकिन उसने राज्य में क्या किया? भाजपा ने असम में असम की बात की, राज्य की अस्मिता की बात की। विकास की बात की, स्थानीय नेताओं को तवज्जो दी और सबसे प्रमुख बात मुस्लिम वोटों पर रणनीति तय करते हुए राज्य के ही सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया। पार्टी ने बिहार और दिल्ली से सबक लेते हुए असम की रणनीति पर काम किया था और इसमें उसे सफलता मिली।
मुस्लिम वोट पर निगाहें: अब सवाल ये है कि क्या असम की रणनीति यूपी में पार्टी के काम आएगी? यूपी में मुस्लिम वोट बैंक भले असम की तरह प्रभावी न हों लेकिन पश्चिम में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, शामली से लेकर पूर्वांचल में बहराइच, आजमगढ़, मऊ जिलों में मुस्लिम वोट बैंक अच्छी खासी आबादी में है और यहां की सीटों पर यह निर्णायक साबित हो सकता है। ऐसे में बीजेपी को यूपी में भी एक ‘बदरुद्दीन अजमल’ तलाशना होगा। राज्य में उसके लिए यह काम ओवैसी की पार्टी एमआईएम, पीस पार्टी या सत्ताधारी समाजवादी पार्टी मिलकर कर सकते हैं।
प्रदेश का सीएमः प्रदेश में चुनाव हो और बिना सीएम प्रोजेक्ट किए मैदान में उतरा जाए ये कहां तक उचित है? या फिर किसी बाहरी को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर दिया जाए? ये दोनों ही बातें बिहार, असम और यूपी जैसे राज्यों के लिए तो बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। बिहार में नीतीश थे, असम में गोगोई थे और यूपी में अखिलेश होंगे। चेहरा चाहिए और दमदार चाहिए।
जनता के मन की बातः असम में भारतीय जनता पार्टी ने जनता के मन की बात पढ़ डाली। नौकरी, पलायन, चाय बागान के मजदूर, बांग्लादेशी घुसपैठ आदि बातों से बीजेपी आम लोगों के मन में घर कर गई। नतीजा, वोटों की बंपर बरसात के रूप में सामने आया। यूपी में भी उसे बिहार वाली गलती न दोहराते हुए जनता के मन की ही बात करनी होगी। पश्चिम से लेकर पूरब तक फैले यूपी की कड़ियां जिन बंधनों से होकर गुजरती है उनकी जटिलता को समझ लेना ही वोट का भरोसा होगा।
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