टीम ब्रेक न्यूज ब्यूरो
लखनऊ. योगी सरकार ने विधायक निधि में पारदर्शिता लाने की एक बड़ी पहल करते हुए निजी ठेकेदारों, एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) व अन्य प्राइवेट संस्थाओं से विकास कार्य कराने पर रोक लगा दिया है। अब विकास निधि के काम अब राज्य सरकार की अधिकृत कार्यदायी संस्थाएं ही कर सकेंगी।
यह प्रस्ताव ग्राम्य विकास मंत्रालय के माध्यम से लाया गया है। बता दें कि 21 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस तय करने के निर्देश दिए थे। इस प्रस्ताव को योगी कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दे दी है। मंत्रिपरिषद के इस निर्णय से विधायक निधि में ठेकेदारों की मिलीभगत से होने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।इस बाबत जल्द ही एक नियमावली जारी कर दी जाएगी। विकास निधि के नोडल अधिकारी सीडीओ होंगे। योजना में 25 लाख से ज्यादा के कोई भी काम स्वीकृत नहीं किए जा सकेंगे। साथ ही विधानमंडल सदस्य ऐसी किसी भी संस्था को विकास निधि को राशि नहीं दे सकेंगे, जिसके सदस्य या पदाधिकारी वे स्वयं या उनके परिवार के सदस्य होंगे।
प्रदेश में विधानसभा और विधानपरिषद के सदस्यों की मांग पर उनके निर्वाचन क्षेत्रों की स्थानीय जरूरतों की पूर्ति और संतुलित विकास के उद्देश्य से 1997-1998 में विधानमंडल क्षेत्र विकास निधि योजना शुरू की गयी थी।
इस योजना के तहत विधानमंडल के सदस्य द्वारा विकास एवं मूलभूत जरूरत के प्रस्ताव को जनपद के मुख्य विकास अधिकारियों को दिये जाते हैं, जिन पर विधानमंडल क्षेत्र विकास निधि योजना के अनुसार क्रियान्वित किया जाता है।
हालांकि, विधायकों/विधान परिषद सदस्यों को मिलने वाले 1.50 करोड़ की धनराशि में से 50 हजार रुपये किसी भी व्यक्ति को एकमुश्त इलाज के मद में दिया जा सकेगा। साथ ही किसी परियोजना पर अधिकतम 25 लाख खर्च किये जा सकेंगे।
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